मेरे सतगुरु होए दयाल तो श्रद्धा पूरी हो । (राधा स्वामी)
मेरे पिताजी श्री मेठाराम थदानी का जन्म 14 जुलाई 1931 मेबदेरो जतोई नवाब शाह मेहरापुर सिंध प्रांत में हुआ । स्वर्गवास 13/8/19 के पूर्व उनकी अंतिम वाणी मेरे सतगुरु होए दयाल तो श्रद्धा पूरी हो (राधास्वामी)ने मुझे लिखने को प्रेरित किया कि कितनी भी बड़ी से बड़ी तकलीफ हो अगर आप नियमित रूप से जाप और योग में विश्वास करते हैं तो हर पीड़ा आप हर लेंगे ।
नाम दान,जापऔर योग की महिमा
किसी भी मंत्र या भगवान के नाम की पुनरावृत्ति को जप के नाम से जाना जाता है। जप योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। मंत्र का दोहराव है। आत्मा के लिए आध्यात्मिक भोजन है। अंधे साधकों के हाथ में मशाल की भांति है। इस युग में, केवल जापा का अभ्यास शाश्वत शांति, आनंद,अनुभव और अमरता प्रदान कर सकता है।
शुरुआत में आपको ध्यान को जप के साथ जोड़ना चाहिए। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं जप अपने आप कम होता जाता है; मात्र ध्यान शेष रह जाता है। यह एक उन्नत चरण है। फिर आप अलग से एकाग्रता का अभ्यास कर सकते हैं। इस संबंध में आप को जो अच्छा लगे, आप कर सकते हैं।
नाम और वस्तु(रूप)अविभाज्य हैं।
विचार और शब्द अविभाज्य हैं।जब भी आप अपने बेटे के नाम के बारे में सोचते हैं, उसका शारीरिक रूप आप की मानसिक आंखों के सामने खड़ा होता है। यहां तक कि जब आप राम, कृष्ण या किसी गुरु का जप करते हैं, तो उनकी तस्वीर आपके दिमाग में आएगी। इसलिए जप और ध्यान एक साथ चलते हैं।वे अविभाज्य हैं।
जाप भावना से करें।
जानिए मंत्र का अर्थ और सब कुछ और हर जगह भगवान की उपस्थिति को महसूस करें। जब आप जप को दोहराते हैं, तो उसके करीब और करीब आएँ। सोचिए वह आपके दिल में चमक रहा है। वह मंत्र के आपके पुनरावृत्ति को देख रहा है क्योंकि वह आपके दिमाग का साक्षी है।
डॉ लाल थदानी
पूर्व अध्यक्ष राजस्थान
सिंधी अकादमी जयपुर ।
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