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Thursday, October 18, 2018

इंसानियत जिंदा रखने के लिए जिंदा होना जरूरी है । भुखमरी को जो भूल जाए वो मगरूरी है ।।  डॉ लाल थदानी

इंसानियत जिंदा रखने के लिए जिंदा होना जरूरी है ।
भुखमरी को जो भूल जाए वो मगरूरी है ।।  डॉ लाल थदानी

कुछ दिनों से इस तस्वीर ने उद्ववेलित कर रखा है । फ़ोटो खींचने के दौरान फोटोग्राफर की आंख से पानी अवश्य बहा होगा और उस दृष्टि को उसे सर्वोच्च पुरुस्कार से भी नवाजा गया । मगर इनाम पाने वाले को एक की छोटी सी टिपण्णी ने उसे अंदर तक इतना झकझोर  दिया कि  उसने उहापोह से निकलने के लिए अपनी इहलीला समाप्त करना बेहतर समझा ।

खैर भुखमरी की जिस तस्वीर का जिक्र किया गया है से नाम दिया गया था  "The vulture and the little girl "
इस तस्वीर में एक गिद्ध भूख से मर रही एक छोटी लड़की के मरने का इंतज़ार कर रहा है ।
इसे एक साउथ अफ्रीकन फोटो जर्नलिस्ट केविन कार्टर ने 26 मार्च 1993 में  सूडान के अकाल के समय खींचा था और इसके लिए उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । लेकिन कार्टर इस सम्मान का आनंद कुछ ही दिन उठा पाए क्योंकि कुछ महीनों बाद 33 वर्ष की आयु में उन्होंने अवसाद से आत्महत्या कर ली ।
दरअसल जब वे इस सम्मान का जश्न मना रहे थे तो सारी दुनिया में प्रमुख चैनल और नेटवर्क पर इसकी  चर्चा हो रही थी । उनका अवसाद तब शुरू हुआ जब एक 'फोन इंटरव्यू' के दौरान किसी ने पूछा कि उस लड़की का क्या हुआ? कार्टर ने कहा कि वह देखने के लिए रुके नहीं क्यों कि उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी । इस पर उस व्यक्ति ने कहा ,
"मैं आपको बता रहा हूँ कि उस दिन वहां दो गिद्ध थे जिसमें एक के हाथ में कैमरा था  !!!"
बताया गया कि कार्टर फोटो शूट से पूर्व वहां 20 मिनट तक रुका रहा कि कब बच्ची गिरे और गिद्ध झपटा मारे ।
इस कथन के भाव ने कार्टर को इतना विचलित कर दिया कि वे अवसाद में चले गये और अंत में आत्महत्या कर ली ।
किसी भी स्थिति में कुछ हासिल करने से पहले  मानवता आनी ही चाहिए । कार्टर आज जीवित होते अगर वे उस बच्ची को उठा कर यूनाईटेड नेशन्स के फीडिंग सेंटर तक पहुँचा देते जहाँ पहुँचने की वह कोशिश कर रही थी ।
आज भी हंगर इंडेक्स में कई देश बदतर स्थिति में है । मगर फाइव स्टार होटलों या एसी कमरों में बैठकर निर्णय लेने वाले अधिकारी या हृदयहीन जनप्रतिनिधि खुद हकीकत का सामना करने मैदान में उतरे तो स्थितियों को बदत्तर होने से पूर्व टाला जा सकता है । मगर क्या आज के भाई भतीजावाद के युग में ऐसा संभव है । आज दशहरा है ।  नवरात्रों का समापन भी है ।
प्रतीक स्वरूप बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में विजयदशमी पर्व  हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । मगर हमारे अंदर के रावण को , अहंकार, लोभ, लालच, झूठ, दम्भ, आदि जैसे विकारों को क्या हम जला पाए हैं आज तक । काश ऐसा संभव हो पाता । काश मैं कुछ कर पाता ।

डॉ लाल थदानी
www.drlalthadani.in
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