ए मेरे मन किस बात का है गम
जिन्दा कर अपना अल्हड़ बचपन
क्यों ऊहापोह, उधेड़बुन और शिकन
उमर पचपन में देख बालमन बचपन
आ फिर से जी ले निर्बाध बचपन
रिश्तों की पौध क्यों सूख रही है
महके बगिया खिले चमन सोचे बचपन
बारिश में बहाएं कागज़ की कश्ती
पकड़े, ठहाका मारे अबोध बचपन
आ फिर से जी ले निर्बाध बचपन
आओ फिर बनाएं मिट्टी के घरोंदे
कूद कर खुद ही रौंधे चंचल बचपन
सूरज रोज क्यों डूबे पश्चिम दिशा में
चंदा तारे क्या बतियाए सोचे बचपन
आ फिर से जी ले निर्बाध बचपन
झूठ बोलकर भी सच्चे लगते थे
लड़कर अगले दिन गले लगते थे
रिश्ते सचमुच बड़े अच्छे लगते थे
सब रंगों में एक ही रंग अनोखा बचपन
आ फिर से जी ले निर्बाध बचपन
डॉ लाल थदानी
#अल्फ़ाज़_दिलसे