तेरा ये चिर-असीम सौंदर्य 
मेरे छोटे हृदय में कैसे 
क्या समा पाएगा 
मेरे दो छोटे छोटे नयना में 
तेरी ऐसी अद्भुत छवि बसी
कवि कितनी भी 
कल्पनाओं की उड़ान भरे
क्या बखान कर पाएगा
जितनी बार तुम्हें देखा
आँखें नहीं भरती
अधरों का रसपान 
तृष्णा नहीं मरती
क्या कोई सागर 
प्यास बुझा पाएगा
तेरा रूप, रस, गंध
अबोध छवि 
मेरी रग रग में ऐसी बसी
क्या कोई किसी 
गजल कविता में निखार
पाएगा 
तुम्हारी हंसी
मेरे सान्ध्य जीवन के
कण-कण में 
ऊषा बन निखरी
मिलन की आस
सुनहरी लाज
कोई सुर साधक 
क्या गा पाएगा
डॉ लाल थदानी
#अल्फ़ाज़_दिलसे 
27.03.2023
 
  