समय असमय निकलता जा रहा है
वक्त बेमुरव्वत गुजरता जा रहा है
रिश्तों को दरकने से पहले संभालो
ये बंद मुट्ठी से फिसलता जा रहा है
जीते जी थी शिकायतों पर शिकायतें
मरने के बाद दरिया बहता जा रहा है
अब जुबां पर सरस्वती नहीं बसती
कैंची चलती है घाव रिसता जा रहा है
डॉ लाल थदानी
अल्फ़ाज़_दिलसे
25.12.2023
8005529714