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Thursday, October 19, 2017

प्रदूषण मुक्त दीपावली : डॉ थदानी

प्रदूषण मुक्त दीपावली मनाएं :
स्वास्थ्य समस्याओं से निजात पाएं
डॉ लाल थदानी Dy Cmho Ajmer
डॉ दीपा थदानी Prof.Jln Hosp Ajmer

दीपावली खुशियों एवं रोशनी का त्यौहार है। बेशक घर आंगन और देहरी पर दीप जलाएं।  दीप जलाना बहुत रमणीय भी लगता है। लेकिन दीपों के साथ-साथ लोग पटाखे भी जलाते हैं। पटाखों का कुछ पल का मजा वातावरण में जहर घोल देता है।  दीपावली के दौरान छोड़े जाने वाले तेज आवाज के पटाखे पर्यावरण के साथ  जन स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं। दीपावली के दौरान पटाखों एवं आतिशबाजी के कारण दिल के दौरे, रक्त चाप, दमा, एलर्जी, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है ।
         दीपावली का समय आते ही लोग घर की साफ-सफाई में जुट जाते हैं और घर के बेकार सामानों को बाहर फेंक देते हैं। इनमें कुछ ऐसे सामान भी होते हैं, जो अजैविक होते हैं और वातावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे सामानों को इधर-उधर ना फेंकें।
             पटाखों से निकलने वाली आवाज अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण फैलाती हैं और यह स्वास्‍थ्‍य के लिए भी हानिकारक होती है। दीपावली में सबसे ज्यादा इस्तेमाल में लाये जाने वाले ‘लक्ष्मी बम’ से 100 डेसिबेल (ध्वनि नापने की इकाई) आवाज आती है और 50 डेसिबेल से तेज़ आवाज़ के स्तर को मनुष्य के लिए हानिकारक माना जाता है। शायद आप नहीं जानते, आवाज के 10 डेसीबल अधिक तीव्र होने के कारण आवाज की तीव्रता दो दोगुनी हो जाती है, जिसका बच्चों, गर्भवती महिलाओं, दिल तथा सांस के मरीजों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।अचानक बहुत तेज आवाज सुनने से व्यक्ति बहरा भी हो सकता है और इस कारण हृदय के मरीजों में दिल का दौरा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।शोर से नवजात बच्चों भी डर जाते है। प्रदूषण पशु-पक्षियों तथा जानवरों के लिये भी अभीष्ठ नहीं है।
    अधिक रोशनी और शोरगुल वाले पटाखों के कारण साथ ही जलने, आंख को गंभीर क्षति पहुंचने ,अंधता और कान का पर्दा फटने और बहरापन, रक्तचाप बढ़ने और दिल के दौरे पड़ने की घटनायें बढ़ जाती हैं।
         पटाखों से सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रोजन डाइआक्साइड आदि हानिकारक गैसें हवा में घुल जाती हैं।
दिवाली के बाद अस्पताल आने वाले हृदय रोगों, दमा,नाक की एलर्जी,ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों की संख्या अमूमन दोगुनी हो जाती है। पटाखों के चलाने से स्थानीय मौसम प्रभावित होता है तथा निम्न बीमारियों की सम्भावना बनती और बढ़ती है-

  घटक                   सेहत पर प्रभाव

1. तांबा                  श्वास तंत्र में जलन
2. कैडमियम           किडनी को हानि,
                             रक्त अल्पता।     
3. सीसा                 स्नायु तंत्र को हानि
4. मैगनिशियम        बुखार
5.  सोडियम           त्वचा पर असर
6. सल्फर डाइ         दम घुटना
     ऑक्साइड        ऑखों , गले में जलन
7.   नाइट्रेट             मस्तिष्क को क्षति
                            बेहोशी की सम्भावना ।

      औद्योगिक इलाकों की हवा में महानगरों में वाहनों के ईंधन से निकले धुएँ के कारण सामान्यतः प्रदूषण का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक होता है और नुकसान का स्तर कुछ दिनों के लिये बहुत अधिक बढ़ जाता है।उसके कारण अनेक जानलेवा बीमारियों यथा हृदय रोग, फेफड़े, गालब्लेडर, गुर्दे, यकृत एवं कैंसर जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, फटाकों से निकले धुएँ के कारण वातावरण में दृश्यता घटती है। दृश्यता घटने से वाहन चालकों कठिनाई होती है और कई बार वह दुर्घटना का कारण बनती है। इसके अलावा पटाखे बनाने वाली कम्पनियों के कारखानों में होने वाली दुर्घटनाएँ और मौतें कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनसे सबक लेना चाहिए।
इसके अलावा, पटाखों से मकानों में आग लगने तथा लोगों खासकर बच्चों के जलने की सम्भावना होती है ।
इसलिये सावधानी हटी दुर्घटना घटी ।

कैसे बरतें सावधानी:
        अगर आपको दमा या सांसों से संबंधी समस्या हैं, तो घर के अंदर ही रहें और धुंए से बचने का प्रयास करें। ऐसे में अगर आपको बाहर जाना ही है, तो अपनी दवाएं साथ रखें और मास्क लगाकर बाहर जायें।
           सभी लोग खासकर बच्चों को नीचे लिखी बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. पटाखों को सुरक्षित जगह पर रखें। उन्हें ज्वलनशील पदार्थों से दूर जाकर ही जलाएँ।
2. वाहनों के आसपास पटाखे नहीं जलाएँ।
3. पटाखे जलाते समय सूती कपड़े पहनें। सिन्थेटिक कपडे ज्वलनशील होते हैं।
4. पटाखे जलाते समय घर की खिड़की और दरवाजे बन्द रखें। इससे आग लगने का खतरा घटेगा।
5. हाथ में रखकर फटाके नहीं जलाएँ। बच्चों को वयस्कों/बुजुर्गों की देखरेख में पटाखे जलाने दें।
6. साधारण जली हुई जगह पर तत्काल पानी डालें और दवा लगाएँ।
7. घर में पानी, रेत, कम्बल और दवा का इन्तजाम रखें।
8. धुएँ से दूर रहें। धुएँ में श्वास नहीं लें।
9. जोरदार आवाज करने वाले फटाकों से छोटे बच्चों और अस्वस्थ वृद्धों को दूर रखें। उनसे बहरेपन का खतरा होता है।

  भारत का संविधान और अधिकार :

स्वास्थ्य मानकों की अनदेखी, बाल मजदूरी नियमों की अवहेलना या असावधानी मानव अधिकारों के उलंघन के प्रति सरकार गंभीर है । उल्लेखनीय है कि भारत का संविधान रेखांकित करता है कि स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराना केवल राज्यों की ही जिम्मेदारी नहीं है अपितु प्रत्येक नागरिक का दायित्व भी है। आर्टिकल 48 अ और आर्टिकल 51 अ (जी) तथा आर्टिकल 21 की व्याख्या से उपर्युक्त तथ्य उजागर होते हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने सुरक्षित सीमा (125 डेसीबल) से अधिक शोर करने वाले पटाखों के जलाने पर रोक लगाई है। इसके अलावा शान्तिपूर्ण माहौल में नींद लेने के आम नागरिक के फंडामेंटल अधिकार की रक्षा के लिये उच्चतम न्यायालय ने दीपावली और दशहरे के अवसर पर रात्रि 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक पटाखों के चलाने को प्रतिबन्धित किया है। पटाखों का उपयोग हमारी परम्परा का अंग है। चूँकि हमारी परम्परा पर्यावरण की पोषक रही है इसलिये हमें पर्यावरण हितैषी और सुरक्षित दीपावली मनाना चाहिए। यह काम प्रत्येक नागरिक अपने स्तर पर खुद कर सकता है। 
पर्यावरण हितैषी और सुरक्षित दीपावली मनाने के लिये निम्न कदम उठाए जा सकते हैं-
1. पटाखों का कम-से-कम उपयोग। इससे पर्यावरणी नुकसान कम होंगे। कम कचरा पैदा होगा। कचरा निष्पादन पर अधिक बोझ नहीं पड़ेगा।
2. कतिपय प्राकृतिक संसाधनों के बेतहाशा दोहन को लगाम लगाने के लिये कम-से-कम अनावश्यक खरीद। इससे पर्यावरणी नुकसान का स्तर का ग्राफ थमेगा।
3. दीपावली पर कम अवधि के लिये बिजली का उपयोग। ऐसा करने से बिजली उत्पादन करने वाले संसाधनों की खपत पर अनावश्यक बोझ नहीं पड़ेगा।

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