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Sunday, June 3, 2018

विश्व पर्यावरण दिवस 2018 मात्र प्रतीकात्मक नहीं बल्कि एक मिशन : डॉ.दीपा /डॉ.लाल थदानी

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विश्व पर्यावरण दिवस 2018 मात्र प्रतीकात्मक नहीं बल्कि एक मिशन : डॉ.दीपा /डॉ.लाल थदानी


विश्व पर्यावरण दिवस 2018 
की थीम है प्लास्टिक प्रदूषण की  समाप्ति ।
इस वर्ष की वैश्विक मेजबानी भारत को मिली  है।इसलिए भी विश्व पर्यावरण दिवस 2018 मात्र एक प्रतीकात्मक समारोह  नहीं बल्कि एक मिशन है।पर्यावरण हमारे जीवन का एक महत्वपूर्णअंग है।हम अपने दैनिक जीवन में पर्यावरणीय संसाधनो का प्रयोग करते है। । कोयला और पेट्रोलियम जैसे गैर नवीकृत संसाधनो का प्रयोग करतेसमय विशेष ध्यान रखना चाहिए जो समाप्त हो सकते है। भूमिऔर पानी के प्रदूषण ने पौधो, जानवरो औरमानव जाति को प्रभावित किया है। अनुमान हैकि प्रत्येक वर्ष लगभग पाचं से सात मिलियनहेक्टयेर भूमि की हानि हो रही है। मानव कीसभी क्रियाओ का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है । जनसंख्या में वृद्धि केवल प्राकृतिकपर्यावरण के लिए ही समस्या नही है । अपितु यह पर्यावरण के अन्य पक्षों जैसे सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक पक्षो के लिए भीसमस्या है।

शहरीकरण का परिणाम है- धूल, बीमारी और विनाश। बढ़ते शहरीकरण की स्थिति में सफाई, बीमारी, आवास, जल आपूर्ति और बिजली की समस्याएं निरतंर बढ़ती रहती है।


यातायात और संचार साधनो के विकास केसाथ औद्योगिकीकरण ने न केवल पर्यावरणको प्रदूषित किया है अपितु प्राकृतिकसंसाधनो में भी कमी पैदा कर दी है। दोनोप्रकार से भारी हानि हो रही है।

 पर्यावरण प्रदुषण / समस्याएं को बढ़ातीप्लास्टिक थैलियाँ 

मानव द्वारा निर्मित चीजों में प्लास्टिक थैलीएक ऐसी है जो माउंट एवरेस्ट से लेकर सागरकी तलहटी तक सब जगह मिल जाती है।पर्यटन स्थलों, समुद्री तटों, नदी-नाले-नालियों, खेत-खलिहानों, भूमि के अन्दर-बाहर सबजगहों पर आज प्लास्टिक कैरी बैग्स अटे पड़ेहुए हैं। लगभग 3 दशक पहले किये गये इसअविष्कार ने ऐसा प्रभाव जमा दिया है कीआज प्रत्येक उत्पाद प्लास्टिक बैग में मिलताहै और घर आतेआते ये थैलियां कचरे मेंतब्दील होकर पर्यावरण को हानि पहुंचा रहीहैं। प्लास्टिक थैलियों की वजह से --वायुप्रदुषण, ध्वनि प्रदुषण और
 जल प्रदुषण होरहा है ।

 वायु प्रदुषण धुएं के द्वारा होता। मीलोंकारखानों और वाहनों द्वारा छोड़े गये धुएं सेपालीथिन का कचरा जलाने से कार्बनडाईआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड एवंडाईआक्सींस जैसी विषैली गैस उत्सर्जितहोती हैं। वायु-प्रदुषण होता है। ।  हम प्रदूषितवायु में सांस लेते है उसके परिणामस्वरूप हीफेफड़ों की बीमारियां, सिरदर्द सांस, त्वचाऔर अन्य बीमारियां हो 
जाती हैं । कैडमियमऔर जस्ता जैसी विषैलीधातुओं का इस्तेमालजब प्लास्टिकथैलों के निर्माण में किया जाता है , तो हृदय का आकार बढ सक़ता है और मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होकर नुकसान पहुंचता है। प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहनेसे लोगों के खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जातीहै।

 प्लास्टिक की बोतल-टिफिन से कैंसर:

हाल ही में रिसर्च से ये बात सामने आई है किप्लास्टिक के बोतल और कंटेनर के इस्तेमालसे कैंसर हो सकता है। प्लास्टिक के बर्तन मेंखाना गर्म करना और कार में रखे बोतल कापानी कैंसर की वजह हो सकते हैं। कार मेंरखी प्लास्टिक की बोतल जब धूप या ज्यादातापमान की वजह से गर्म होती है तोप्लास्टिक में मौजूद नुकसानदेह केमिकलडाइऑक्सिन का रिसाव शुरू हो जाता है। येडाईऑक्सिन पानी में घुलकर हमारे शरीर मेंपहुंचता है।

 गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाकप्लास्टिक:

 प्लास्टिक की वजह से महिलाओं में ब्रेस्ट
कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। सिर्फ पन्नी हीनहीं, बल्कि रिसाइकिल किए गए रंगीन यासफेद प्लास्टिक के जार, कप या इस तरह केकिसी भी उत्पाद में खाद्य पदार्थ या पेय पदार्थका सेवन स्वास्थ्य के लिए घातक सिध्द होसकता है।इनमें मौजूद बिसफिनोल ए नामक जहरीला पदार्थ बच्चों और गर्भवतीमहिलाओं के लिए खतरनाक है। बिसफिनोल ए शरीर में हार्मोन बनने की प्रक्रिया और उनकेस्तर को भी प्रभावित करता है।इससे प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।
प्लास्टिक के घातक तत्वों के खाद्य पदार्थों एवंपेय पदार्थों के माध्यम से शरीर में पहुंचने सेमस्तिष्क का विकास बाधित होता है। इसकाबच्चों की स्मरण शक्ति पर सर्वाधिक विपरीतअसर पड़ता है।यह गर्भस्थ शिशु के विकास को भी रोकसकती है।

धुआं ओजोन परत को नुकसान पहुंचाता है जो ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा 
कारण है ।
प्लास्टिक थैलियों के बढ़ते प्रचलन से सफाईव्यवस्था में जबर्दस्त अवरोध पैदा हो रहा है।लोगों द्वारा घरों आदि का कूड़ा-करकटप्लास्टिक की थैलियों में बन्द कर फेंक दियाजाता है।
प्रायः हरी साग सब्जियों के छिलके एवं अन्य बेकार खाद्य पदार्थ भी पॉलीथीन की थैली मेंफेंक दिए जाते हैं। प्लास्टिक के लिफाफों से फैली  गंदगी से आज पीलिया, डायरिया,  हैजा, आंत्रशोथ जैसी बीमारियां फैल रही है।पॉलीथीन को पशु छिलकों आदि के  साथ खा जाते हैं जो पशुओं के पेट में जाकर कभी कभी आँतों में फँस जाता  है। इस तरह पशुओं की मौत का कारण बन जाता है । नतीजा, जीव  जंतुओं की कई जातियां दुर्लभ होती जा रही है।

पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार पॉलीथिनसीवर जाम का सबसे बड़ा कारण है।  प्लास्टिक के 20 माइक्रोन 
या इनसे पतली पॉलीथीन की थैलियाँ  नाले नालियों और सीवर लाइनों में पहुँचकर उन्हें अवरुद्ध कर देती हैं। यदि इसे दस बीस वर्षों तक भी  जमीन में  दबाए रखा जाए यह तब भी नहीं गलती है। कुछ पॉलीथिन बैग्स करीब 500 या 600  सालों में गलते हैं। इससे गंदे पानी का बहाव बाधित होता है जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। बिनाबाढ़ के मोहल्ले में भी बाढ़ की शंका पैदाकरता हैं । पानी का रुकना गंदगी का साम्राज्य फैलना हैं मलेरिया फैलने का कारण बनता हैं ।

अपशिष्ट पदार्थ और कूड़ाकचरा नदियों में फेंक दिया जाता है इससे जल  प्रदूषित होजाता है । हानिप्रद कीटाणु उत्पन्न  हो  जाते है।हम प्रदूषित जल पीते हैं और अनेक बिमारियां हो जाती हैं।

प्लास्टिक जब गलते हैं तो मिट्टी
 में कई तरह केहानिकारक रसायन छोड़ देते हैं जो बाद में नदी-नालों से होते हुए  समुद्री जीव जंतुओं केलिए जानलेवा साबित होते हैं।पॉलीथीन नष्ट न होने के कारण यह भूमि की उर्वरा शक्ति को खत्म कर रही है। कृषि भूमिपर जहाँ कहीं भी जाकर मिट्टी में दब जाता हैफसलों के लिए उपयोगी कीटाणुओं को मारदेती है । इनसे बड़ा नुकसान यह होता है वहाँ कोई पौधा नहीं उग पाता हैबांग्लादेश में वर्ष 2002 में पॉलीथिन बैग्स कोइसलिए प्रतिबंधित करना पड़ा था क्योंकि ये1988 और 1998 में वहां कई इलाकों में बाढ़आने की वजह तक बन गए थे। । मशीनों औरवाहनों, जैसे – मोटरकार, बस  व ट्रको  का शोर वातावरण में मिल  जाता  है। इसे ध्वनि प्रदूषण कहते है।यह भी  खतरनाक है। यह हमारे कानों और  दिमाग  पर प्रभाव  डालता है। मनुष्य बहरा या कम सुननेवाला हो सकता हैं।

प्लास्टिक थैली बनी जहर की पोटली!

एक अनुमान के मुताबिक हर साल धरती पर500 बिलियन से ज्यादा पॉलीथिन बैग्सइस्तेमाल में लाए जाते हैं।

 सारे विश्व में एक साल में दस खरब प्लास्टिकथैलियां काम में लेकर फेंक दी जाती हैं।अकेले जयपुर में प्रतिदिन 35 लाख लोगप्लास्टिक का कचरा बिखेरते है और 70 टनप्लास्टिक का कचरा सडकों, नालियों औरखुले वातावरण में फैलता हैं। केन्द्रीयपर्यावरण नियन्त्रण बोर्ड के एक अध्ययन केमुताबिक एक व्यक्ति एक साल में 6 से 7 किलो प्लास्टिक कचरा ( पॉलीथिन बैग्स ) फैकता है। पूरे राजस्थान में प्लास्टिक उत्पाद-निर्माण की 1300 इकाइयाँ है, तो इस हिसाबसे पूरे देश में कितनी होंगी, यह सहज अनुमानका विषय है। आज देश भर में 85 फीसदी सेअधिक उत्पाद प्लास्टिक पैकिंग में ही आ रहेहैं। इस समय विश्व में प्रतिवर्ष प्लास्टिक काउत्पादन 10 करोड़ टन के लगभग है औरइसमें प्रतिवर्ष उसे 4 प्रतिशत की वृध्दि हो रहीहै। भारत में भी प्लास्टिक का उत्पादन वउपयोग बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। औसतनप्रत्येक भारतीय के पास प्रतिवर्ष आधा किलोप्लास्टिक अपशिष्ट पदार्थ इकट्ठा हो जाता है।इसका अधिकांश भाग कूड़े के ढेर पर औरइधर-उधर बिखर कर पर्यावरण प्रदूषणफैलाता है।दुनिया भर में हर सेकंड आठ टनप्लास्टिक बनता है. हर साल कम से कम 60 लाख टन प्लास्टिक कूड़ा समुद्र में पहुंच रहाहै. वैज्ञानिकों का कहना है कि महासागर भीबुरी तरह इस कचरे से भर गए हैं. धोखे सेपॉलीथिन खाने के कारण हर साल दुनिया भरमें एक लाख से अधिक व्हेल मछली, सीलऔर कछुए सहित अन्य जलीय जंतु मारे जातेहैं. जबकि भारत में 20 गाय प्रतिदिनपॉलीथिन खाने से मर रही हैं. इतना ही नहींसैकड़ों सालों तक नष्ट न होने वाली पॉलीथिनसे नदी नाले ब्लॉक हो रहे हैं और जमीन कीउत्पादकता पर भी असर पड़ रहा है. 

1995 में भारत में 7916 टन प्लास्टिक कचरेका आयात किया। प्लास्टिक कचरे केअतिरिक्त भारत ने 1993 में 502 टन लेडकचरा, 346 टन लैड बैटरी कचरा, 30,498 टन टिन, कॉपर और अन्य धातुओं का कचराआयात किया। 1993 के बाद से भारत मेंकचरे का आयात बढ़ रहा है।


 प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध


प्लास्टिक थैलियों के उद्योगों कोउत्पादकताओं को भले ही क्षणिक फायदाहोता हो कुछ फायदा हो रहा हो औरउपभोक्ताओं को भी सामान ले जाने में सुविधामिल रही हो लेकिन यह क्षणिक लाभपर्यावरण को दीर्घकालीन नुकसान पहुंचा रहाहै। कुछ लोग 20 माइक्रोन से पतले प्लास्टिकपर प्रतिबंध लगाने की वकालत कर उसमेंअधिक मोटे प्लास्टिक को रिसाइक्लड करनेका समर्थन करते है लेकिन वह रिसाइक्लड  प्लास्टिक भी एलर्जी, त्वचा रोग एवं पैकिंगकिये गये खाद्य पधार्थों को दूषित करता है।

इसलिए हर तरह की प्लास्टिक बैग / प्लास्टिक थैलियों पर पूर्णतया प्रतिबंध लगायाजाना जनहित में जरुरी हैं।

 प्लास्टिक कचरा प्रबंधन हेतु कार्ययोजनायें

पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रि-साइकिंल्डप्लास्टिक मैन्यूफैक्चर ऐंड यूसेज रूल्स, 1999 जारी किया था, जिसे 2003 में,पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1968 केतहत संशोधित किया गया है ताकि प्लास्टिककी थैलियों और डिब्बों का नियमन औरप्रबंधन उचित ढंग से किया जा सके। भारतीयमानक ब्यूरो (बीआईएस) ने धरती मेंघुलनशील प्लास्टिक के 10 मानकों के बारे मेंअधिसूचना जारी की है।

 

प्लास्टिक से परहेज का कारण:

•         अधिकतर प्लास्टिक तेलों से बनते हैं,जो स्वयं में गैर-नवीकरणीय स्रोत हैं।

•         प्लास्टिक अत्यधिक ज्वलनशील हैं।इसलिए आग भड़कने की सम्भावना ज्यादारहती है

•         प्लास्टिक में लिपटे पदार्थों के खाने सेपशुओं का दम रहा है और बीमारियों से मररहे हैं।

• प्लास्टिक के उपयोग से नदी- नाले में रुकावट उत्पन्न हो  रही है।

•जलीय जीव जंतु समाप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।

 पॉलीथिन का विकल्प ही समाधान

पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए हमें कपड़ा, जूट,  कैनवास, नायलान और कागज के बैग का इस्तेमाल सबसे 
अच्छा विकल्प है।सरकार को पॉलीथिन के विकल्प पेश कर रहे उद्योगों को कुछ  वित्तीय प्रोत्साहन देना चाहिए । साथ इन उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए जनता में जागरूकता  अभियान चलाना चाहिए। यहां, ध्यान देने की बात है कि कागजकी थैलियों के निर्माण में पेड़ों की कटाईनिहित होती है और उनका उपयोग भी सीमितहै।  इसके लिए लोगों को भी अपनी आदत मेंबदलाव लाना चाहिए। जब भी घर से बाजारके लिए निकलें कपड़ा या जूट का बैग साथलेकर जाएं। आदर्श रूप से, केवल धरती मेंघुलनशील प्लास्टिक थैलियों का उपयोग हीकिया जाना चाहिये। जैविक दृष्टि सेघुलनशील प्लास्टिक के विकास के लियेअनुसंधान कार्य जारी है।

पॉलीथिन भगाओ पर्यावरण बचाओ एक मिशन
जिस तरह से पर्यावरण खराब हो रहा है अगर समय रहते उस पर  ध्यान नहीं दिया गया तोआने वाली पीढ़ी को इसका खामियाजाभुगतना पड़ेगा । पूरे देश को एकजुटहोकर इस मुहिम में जुटना होगा और हर एकव्यक्ति अगर अपने आस-पास के 10 लोगों मेंभी प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को लेकरजागरुक करे तो रोजमर्रा के इस्तेमाल में होनेवाले प्लास्टिक से बढ़ते खतरे से लोगों कोबचाया जा सकता हैं।

 हमें पर्यावरण का सम्मान करना चाहिए।योजनाबद्ध औद्योगीकरण होना चाहिए। हमेंअधिक से अधिक पेड़ उगाने चाहिए।आज लोगों को लग रहा है कि गर्मी बहुत लगरही है। पर कब तक AC का सहारा लेंगे, आज हिन्दुस्तान में 150 करोड़ पेड़ कीजरूरत है।

अभी तो यह शुरुआत हैं। 45 से 50 डिग्री को55 से 60 होने में देर नहीं लगेगी। अभी सेसमझकर पौधे लगाने होंगे क्योंकि एक पौधेको बड़ा होने मे 5 से 7 साल लग जाएगे।

सब कुछ सरकार पर मत छोडिये।

वृक्षारोपण के फायदे

1. शुद्ध ऑक्सीजन मिलता है ।

2. हानिकारक गैसों, जो पर्यावरण को दूषितकरते हैं,को अवशोषित करता है । कार्बनमोनो-ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड औरअन्य हानिकारक गैसों और वाहनों द्वाराउत्सर्जित धुएं और उद्योगों से निकलते प्रदूषणको पेड़ों की उपस्थिति के कारण काफी हदतक नियंत्रित और शुद्ध किया जाता है।

3. इस प्रकार से वायु और जल प्रदूषणनियंत्रित करते हैं ।

4. पक्षियों और जानवरों के लिए भोजन औरआश्रय प्रदान करता है ।

5. गर्मियों के दिनों में छाया और आश्रय प्रदानकरता है।

6. पेड़ पर्यावरण को शांत रखते हैं। वे गर्मी केअसर को कम करने में मदद करते हैं।

उनसे प्राप्त ठंडक का असर ऐसा है कि यहआसपास के स्थानों में 50% तक एयरकंडीशनर की आवश्यकता को कम करसकता है ।

7. औषधि / प्राकृतिक उप प्रदान करते हैं ।

सेब, राख, देवदार, बीच, एलो वेरा, तुलसी,सफेद पाइन और सिल्वर बिर्च सहित कई पेड़और पौधें अपनी औषधीय गुणों के लिए जानेजाते हैं।

8. पेड़ तनाव कम करते हैं ।

तनाव जो कि विभिन्न शारीरिक और मानसिकबीमारियों का कारण है, पेड़ों में हमें फिर सेजीवंत करने की शक्ति है।

इलाके से एकत्र किये गये ऑर्गेनिक वेस्ट की प्रोसेसिंग शुरू होती है।लोगों की जरूरत के मुताबिक वेस्ट कोकम्पोस्ट और फ्यूल स्टिक में तैयार कियाजाता है। इन स्टिक का इस्तेमाल कोयले औरलकड़ी के विकल्प के रूप में किया जा सकताहै। इससे किसी भी तरह का पॉल्यूशन नहींहोता है।पहले लोग ग्रीन वेस्ट को फेंक देते थे,लेकिन अब वे इस ग्रीन वेस्ट से पेड़-पौधों केलिये फर्टीलाइजर तैयार कर सकते हैं।फूल, पत्तियाँ, सब्जी इत्यादि से फर्टिलाइजर, स्मोकफ्री फ्यूल, फ्यूल स्टिक जैसे प्रोडक्ट बनाते हैं।इससे किसी भी तरह का पॉल्युशन नहीं होता।साथ ही ग्रीन वेस्ट का सही उपयोग हो जाताहै।

डॉ दीपा थदानी प्रोफेसर,                जे एल एन मेडिकल कॉलेज अजमेर

डॉ लाल थदानी उप मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अजमेर ।

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