शहर के वाशिंदों ने निगल लिये गांव
हरी भरी वसुंधरा नीला आसमां
उबड़ खाबड़ पगडंडी खेत खलिहान
बैलों के घुंगरुओं की झनकार पर
गुनगुनाते हल चलाते किसान
लोक गीतों पर थिरके छोरी के पांव
नाचते गाते मोर , चहचहाते पंछी,
सांझ वेला लौटे अपनी ठांव
शहर के वाशिंदों ने निगल लिये गांव ।
रंग बिरंगे घर, रंगोली और द्वार
सावन की बदली घनघोर फुआर
सरलता, निश्छलता ,अपनापन, प्यार
कबड्डी, सतोलिया के लिए मान मनुआर
बच्चों की अठखेलियां कभी इनकार
बड़ों की डांट डपट , लाड़ दुलार
गीली मिट्टी पर फिसलते नंगे पांव
शहर के वाशिंदों ने निगल लिये गांव ।
सुबह सिंदूरी, मुर्गे की बांग
लस्सी, गुड़ , लसन प्याज
बाजरे की रोटी का स्वाद
मंगल गीत , ढोलक की धाप
शादी ब्याह का होता आग़ाज़
रंग बिरंगे लिबास में पूरा गांव
चौसर , चिलम, चौपाल पर लगते दांव
शहर के वाशिंदों ने निगल लिये गांव ।
बढ़ती जनसंख्या से
रोजगार की तलाश में
शहर की चकाचौंध में
आधुनिकता,आपाधापी में
औद्योगिकरण , अतिक्रमण, अंधी दौड़ में
भटक गया भोला ग्रामीण किसान
छूटा सबका गांव, पीपल की ठंडी छांव
शहर के वाशिंदों ने निगल लिया गांव ।
डॉ लाल थदानी
#अल्फ़ाज़_दिलसे
बड़े ही हर्ष का विषय है कि मेरी 16वीं काव्य रचना अमर उजाला में प्रकाशित हुई है ।
इस काव्य रचना के साथ-साथ पूर्व की रचनाएं विभिन्न साहित्य मंच पर भी प्रकाशित की गई हैं ।
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16वीं. शहर के वाशिंदों ने निगल लिये गांव https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/drlal-thadani-shahar-ke-vashindon-ne-nigal-liye-gaaon
15वीं. आओ मुकम्मल करें ख़्वाब https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/drlal-thadani-aao-mukammal-karein-khwaab
डॉ लाल थदानी
#अल्फ़ाज़_दिलसे
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