आओ मुकम्मल करें ख़्वाब
वो चांदनी रात
कहकर मुझे चाँद
अधूरी रह गई बात
छोड़ गए मेरा साथ
आओ मुकम्मल करें ख़्वाब
किस बात पर हुए नाराज़
मेरी कायना़त मेरे आफ़ताब
तकलीफ़ से गए बेहिसाब़
रिसने लगे हैं जज़्बात
आओ मुकम्मल करें ख़्वाब
पथरीली हुई आंख
अविरल बरसात
सूनी महफ़िलें आज
कब होगी मुलाक़ात
आओ मुकम्मल करें ख़्वाब
मेरी दुनिया तुम मेरे परवाज़
तुम नहीं किसे होश_ओ_हवास
बहके बहके से मेरे कदमात
टूट रही सांस अब दे दो साथ
आओ मुकम्मल करें ख़्वाब
मुझसे ही तुम्हारे जज़्बात
दिन रात तेरे ख़यालात
पल पल तुम्हारी याद ही याद
मेरी किताब मेरे अल्फ़ाज़
आओ मुकम्मल करें ख़्वाब
————✍🏻डॉ लाल थदानी
11.01.2021
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