जो न दबाव में झुका न बीमारी से टूटा
अपनी शर्तों पर जिए डॉ बी एस दत्ता
*जे एल एन अस्पताल अजमेर में न्यूरो सर्जन डॉ बी एस दत्ता का हुआ निधन* प्रशासनिक अधिकारियों को बहुत बड़ी नसीहत दे गए डॉ बी एस दत्ता । वे वीआईपी कल्चर के हमेशा विरुद्ध रहे । किसी के न दबाव में झुके न बीमारी से टूटे मगर डॉ बी एस दत्ता अंतिम समय तक अपनी शर्तों पर जिए । वे कोरोना को तो जी गए । मगर कैंसर को नहीं जीत सके । पिछले कुछ दिनों से मेंदांता अस्पताल में उनका चल रहा था इलाज ।
मेदांता रेफर होने से पूर्व वे इमरजेंसी वार्ड में भर्ती रहे और मुझे उनका हालचाल पूछने का सौभाग्य मिला । बहुत कमजोर हो चले थे फिर भी वे मुस्कुराए और कहा जीत लेंगे बाजी हम तुम । पारिवारिक मित्र मोहन सोनी के जरिए कोरोना के दौरान डॉ दत्ता ने मेरा हाल चाल भी पूछा था । कोरोना उपचार के दौरान उनका एक वीडियो वायरल हुआ "मन रे तू काहे न धीर धरे ।"। उनके और मेरे बच्चे साथ साथ अजमेर क्लब के तरणताल में तैरना सीखे थे । मिसेज दत्ता श्रीमती मनप्रीत कौर और मेरी श्रीमती डॉ दीपा थदानी रोज डॉ बीएस दत्ता उम्दा गायक भी थे ।
बहुत कम लोग जानते हैं की पोस्ट ग्रेजुएशन के दौरान उन्हें टी सीरीज की तरफ से मोहम्मद रफी के गीत गाने का निमंत्रण मिला । बहुत सोच विचारने के बाद उन्होंने वह ऑफर ठुकरा दी और कई बार बातचीत के दौरान उन्हें इस बात का मलाल भी रहा । वह ऑफर बाद में सोनू निगम को मिला और वे सुप्रसिद्ध गायक बने ।
प्रशासनिक अधिकारियों के साथ उनके संबंध हमेशा टकराव भरे रहे । और यह बहुत बड़ी नसीहत भी है विशेषज्ञ डॉक्टरों के लिए जो गरीब मरीजों की लाइन छोड़कर उनके एक फोन पर उनके मिलने वाले मरीजों को वीआईपी ट्रीटमेंट देते हैं । ये नसीहत प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी है जो डॉ दत्ता जैसे व्यक्तित्व से टकराने का दंभ भरते हैं और अखबार की सुर्खियों के माध्यम से पता चलता है कि उन्हें मुंह की खानी पड़ी ।
उसी दौर में करीब 9 वर्ष पूर्व डॉ दत्ता ने बी आर एस की सरकार को अर्जी भिजवा दी और काफी समय तक वे चर्चा में रहे ।
वर्ष 2005 में डॉ दत्ता का जोधपुर तबादला कर दिया था। वहीं जोधपुर से अजमेर आए न्यूरोसर्जन डॉ निषिद भार्गव ने कॉलेज प्रशासन से मांग की थी कि उन्हें 24 घंटे एक रेजीडेंट डॉक्टर चाहिए। उन्हें नहीं दिया गया और वे रिजाइन कर चले गए। परिणामस्वरूप वार्ड बंद करने की नौबत आ गई। इसके बाद डॉ दत्ता को सप्ताह में तीन दिन जेएलएन अस्पताल की जिम्मेवारी सौंपी गई और शेष तीन दिन जयपुर से चिकित्सक को लगाया गया था। बाद में सरकार ने दो माह बाद डॉ. दत्ता का अजमेर तबादला कर दिया था। एक एम आई निरीक्षण 2015 के दौरान उन्हें उदयपुर भी भेजा गया । इस दौरान अस्पताल आने वाले सड़क हादसे के गंभीर रोगियों को जयपुर के एसएमएस अस्पताल रैफर किया जाने लगा था। जयपुर रैफर किए जाने वाले कई रोगियों की बीच रास्ते में मौत हो जाती थी।
वरिष्ठ पत्रकार गिरधर तेजवानी ने 25 मई 2013 को अजमेर नामा में लेख लिखा की डॉ बीएस दत्ता की उपस्थिति और अनुपस्थिति हमेशा चर्चा का विषय रही । वे अनुशासन और सफाई प्रिय थे और नौकरी की तो कभी भी परवाह नहीं की । उनमें आत्मविश्वास इतना कूट-कूट कर भरा हुआ था कि वह चाहते तो 4 गुना अधिक दामों में किसी भी प्राइवेट अस्पताल में लग सकते थे ।
जाने माने पत्रकार रजनीश रोहिल्ला ने उनके लिए लिखा है कि *अदभुत थे डाॅक्टर दत्ता, गरीबों के भगवान थे* । डाॅ दत्ता अदभुत, विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। डाॅ दत्ता चिकित्सा विज्ञान के लिए वरदान थे । रोहिल्ला जी बताते हैं कि एक दिन डाॅ दत्ता ने सुबह ठीक 7 बजे न्यूरो वार्ड का उन्हें दौरा करवाया और पांच अचीवमेंट नोट करने लायक थी ।
1. वार्ड की सफाई सुबह 7 बजे से पहले हो जाती है।
2. दूसरा कि मरीज और उनके रिश्तेदारों के जूतेचप्पल वार्ड के बाहर ही उतारे जाते हैं। इसके साथ ही मरीजों को पहनने के लिए वार्ड से ही चप्पल दी जाती है।
3. मरीज के साथ केवल एक ही रिश्तेदार रह सकता है।
4. चौथी मरीज और आवश्यक होने पर उसके परिजन के लिए दोनों समय का खाना और नाश्ता भी
उपलब्ध कराया जाता है।
5. वार्ड में साउंड सिस्टम लगा दिया गया है। सुबह- सुबह भजन और फिर दिन में कुछ मनोरंजन के लिए गीत चलाएं जाते हैं।
अनूमन आम धारणा रही है कि अजमेर और सरकारी अस्पताल का नाम आते ही मरीज जे एल एन में भर्ती होने की अपेक्षा जयपुर रेफर करवाना पसंद करता है । न्यूरो सर्जरी में हमेशा गंभीर अवस्था में ही मरीज भर्ती होते हैं ।
समाज सेवा में जुड़े रहने की वजह से मेरे पास भी ऐसे कई मरीज आए हैं और आते हैं और मुझे खुशी है कि जितने भी मेरे मिलने वालों के मरीज भर्ती हुए इक्का-दुक्का छोड़कर आज सभी स्वस्थ हैं । डॉ दत्ता का नाम आते ही मुझे मरीजों और उनके अभिभावकों की हौसला अफजाई करने में बिल्कुल भी देर नहीं लगती थी कि न्यूरो सर्जरी में बाहर जाने की कतई आवश्यकता नहीं है । उन्होंने अपने जीवन में मस्तिष्क के कई जटिल ऑपरेशन करके सैंकडों लोगों की जिंदगीयां बचाई है । डॉ बीएस दत्ता के लिए कोई समय निश्चित नहीं था । आधी रात हो या सुबह तड़के । गंभीर मरीज को जिस समय जरूरत पड़ी डॉ दत्ता उपलब्ध रहे । एक सख्त चेहरे के पीछे मानवीय ह्रदय धड़कता था ।
आज उन सब के डॉ दत्ता की मृत्यु का समाचार मिलने पर फोन आए और मुझे यह श्रद्धांजलि लेख लिखने का अवसर दिया ।
आत्मविश्वास की जीती मिसाल रहे हैं डॉ दत्ता और न्यूरों सर्जरी में उनका वरदहस्त रहा है । उनकी मृत्यु से चिकित्सा जगत में विशेषकर अजमेर जे एल एन अस्पताल में उनके कार्यों और बातों को हमेशा याद रखा जाएगा और माननीय चिकित्सा मंत्री के लिए अब दुविधा भी रहेगी कि जयपुर में 14 न्यूरोसर्जन में से किसको अजमेर भेजते हैं और क्या आने वाला न्यूरो सर्जन डॉ दत्ता जैसी ऊंचाइयां छू पाएंगे ।
डॉ दत्ता के लिए मुझे परवीन शाकिर का शेर याद आ रहा है
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा
शत शत नमन और सादर प्रणाम ।।
सब गमगीन थे उन की मौत पर
मगर तालियां बजाना भी नहीं भूले
उनकी उपलब्धियों पर
डॉ लाल थदानी
वरिष्ठ जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ,
उप अधीक्षक,
जवाहरलाल नेहरू हॉस्पिटल, अजमेर ।
8005529714
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