लघु कथा
कान्हा तो कान्हा ही रहेगा / डॉ लाल थदानी
बेचारा गरीब सुदामा चावल की पोटली और
राखी लेकर आधुनिक अमीर कृष्ण के पास गया । उसने ही तो दोस्तों को मैसेज किया था । वो भी अंग्रेजी में । छोटा सा मोबाइल लेकर सुदामा सबको मेसेज दिखाता फिरा ।
You guy's whenever you happen to be here please visit ( जब भी आपका आना हो कृपया मेरे पास जरूर आना ) । भोला भाला सुदामा ने समझा राखी और जन्माष्टमी का शुभ मौका है ।
मिल आता हूं । गूजर मोहल्ले में साथ साथ खेलते थे। पता नहीं पहचानेगा या नहीं । सो पहुंच गया डरता झिझक्ता।
बेचारा सुदामा ।
तीस साल पहले की पढ़ाई और आज की पढ़ाई में दिन रात का फर्क था । हाई टेक शहर का कान्हा आज भी नटखट है । सातों युगों का इतिहास उठाकर देखो । कान्हा तो कान्हा ही रहेगा । रिझाने वाला , सताने वाला । बस बदलाव आया तो समय के हिसाब से सोच में , पहनावे में , ऊंच नीच , अमीरी गरीबी में । अब तो सात युगों के बाद माटी की खुशबू बिखर गई कारों के काफिले के साथ , ऊंची ऊंची इमारतों की दीवारों और नींव में दब सी गई है । चकाचौंध रोशनी में अपने आप से दूर होते नौकरी और छोकरी के पीछे भागने वालों को खुशबू आए भी तो कहां से । कोरोना ने नाक पर मास्क की परत और चढ़ा दी । भाव शून्य व्यक्ति लिखे खुद समझे खुद ।
बड़े शहर में रहने वाले कृष्ण को छोटे शहर के छोटे कद पास सुदामा क्यों भाने लगा ।
ना फोन की घंटियां सुनी गई और न फोन उठाया गया । सुदामा समझ गया। अभी कृष्ण अवसाद में है । शायद #anxiety या फिर #splitpersonality
सोचा था कृष्ण को सरप्राइज़ दूंगा । खुद कृष्ण लीला के आगे सुदामा आश्चर्यचकित हो गया । लेकिन गरीब के मुंह से दुआएं ही निकलती हैं । जो दे उसका भला जो ना दे उसका भी भला । सुदामा ने उसे भी दुआएं दी । जल्द स्वस्थ होने की मंगलकामना देता हुआ सुदामा उल्टे पांव अपने घर लौट आया ।
#अल्फ़ाज़_दिलसे
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-Dr Lal Thadani
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