Lovely, Healthy,
Stress free
New Year Wishes
and Blessings.
Dr Lal Thadani
Dr Deepa Thadani
Monday, December 31, 2018
वर्ष के अंतिम समय का माफीनामा...
वर्ष के अंतिम समय का माफीनामा...
मैं उन सब से माफ़ी मांगता हूं ,,
कृपया मुझे क्षमा करें ।।
➡वो सभी जो समझते है कि मैं घमंडी हूं
➡वो सभी जो समझते है मैंने उनकी उपेक्षा की
➡वो सभी जिन्हें मेरे व्यवहार से कष्ट पहुंचा है
➡वो सभी जिनको मैं पूरे वर्ष भर मिल नही पाया या उनसे बात भी नही कर पाया
➡वो सभी जिनको मेरे शब्दों से कष्ट पहुंचा हो
➡वो सभी जिनसे मैंने कोई वायदा किया था लेकिन उसको पूरा नही कर पाया
➡जाने अनजाने जिनसे मैं मित्रवत व्यवहार नही कर पाया अथवा जिनके साथ मेरा व्यवहार कठोर रहा ।। कृपया मुझे क्षमा करें ।।
नव वर्ष 2019 में दुखों और कड़वाहट के साथ नहीं मुस्कराते हुए प्रवेश करें।।
आपको सपरिवार एवं इष्ट मित्रों को स्वास्थ्य , प्रसन्नता के साथ नव वर्ष 2019 की अग्रिम शुभकामनाएं ।
डॉ लाल थदानी
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Tuesday, November 6, 2018
A Pollution Free Happy Diwali
प्रदूषण मुक्त दीपावली मनाएं :
स्वास्थ्य समस्याओं से निजात पाएं
डॉ लाल थदानी Dy Cmho Ajmer
डॉ दीपा थदानी Prof.Jln Hosp Ajm
https://www.instagram.com/p/B4G0HC2nrXW/?igshid=1mhuwdyoxrp98
संशोधित
http://livenlovelifebylal.blogspot.in/2017/10/blog-post.html?m=1
https://drlalthadani.wordpress.com/2017/10/19/ प्रदूषण-मुक्त-दीपावली-डॉ थदानी /?preview=true
दीपावली खुशियों एवं रोशनी का त्यौहार है। बेशक घर आंगन और देहरी पर दीप जलाएं। बहुत रमणीय भी लगता है। लेकिन लोग पटाखे भी जलाते हैं। जो कुछ पल का मजा वातावरण में जहर घोल देता है।
दीपावली के दौरान तेज आवाज के पटाखे पर्यावरण के साथ जन स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं। आतिशबाजी अधिक रोशनी और शोरगुल वाले पटाखों के कारण जलने, आंख को गंभीर क्षति पहुंचने ,अंधता और कान का पर्दा फटने और बहरापन, रक्तचाप बढ़ने और दिल के दौरे,दमा, एलर्जी, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी स्वा. समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है ।
पटाखों से निकलने वाली आवाज अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण फैलाती हैं और यह स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होती है। सबसे ज्यादा इस्तेमाल में लाये जाने वाले ‘लक्ष्मी बम’ से 100 डेसिबेल (ध्वनि नापने की इकाई) आवाज आती है और 50 डेसिबेल से तेज़ आवाज़ के स्तर को मनुष्य के लिए हानिकारक माना जाता है। शायद आप नहीं जानते, आवाज के 10 डेसीबल अधिक तीव्र होने के कारण आवाज की तीव्रता दो दोगुनी हो जाती है, जिसका बच्चों, गर्भवती महिलाओं, दिल तथा सांस के मरीजों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।शोर से नवजात बच्चों भी डर जाते है। प्रदूषण पशु-पक्षियों तथा जानवरों के लिये भी अभीष्ठ नहीं है।
दीपावली के समय लोग घर की साफ-सफाई में जुट जाते हैं और बेकार सामानों को बाहर फेंक देते हैं। इनमें कुछ अजैविक होते हैं और वातावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे सामानों को इधर-उधर ना फेंकें।
पटाखों से सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रोजन डाइआक्साइड आदि हानिकारक गैसें हवा में घुल जाती हैं। दिवाली के बाद अस्पताल आने वाले हृदय रोगों, दमा,नाक की एलर्जी,ब्रोंकाइटिस औरनिमोनिया जैसी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों की संख्या अमूमन दोगुनी हो जाती है ।
पटाखों के चलाने से स्थानीय मौसम प्रभावित होता है तथा अनेक बीमारियों की सम्भावना बनती और बढ़ती है ।
Let's celebrate
#pollutionfreediwali🙏
#sayno2crackers
#HappyDiwali
#greendiwali
घटक सेहत पर प्रभाव
1. तांबा श्वास तंत्र में जलन
2. कैडमियम किडनी को हानि,
रक्त अल्पता।
3. सीसा स्नायु तंत्र को हानि
4. मैगनिशियम बुखार
5. सोडियम त्वचा पर असर
6. सल्फर डाइ दम घुटना
ऑक्साइड ऑखों,गले में जलन
7. नाइट्रेट मस्तिष्क को क्षति
बेहोशी की सम्भावना
सावधानी हटी दुर्घटना घटी
1.पटाखों को सुरक्षित जगह पर रखें। उन्हें ज्वलनशील पदार्थों से दूर जाकर ही जलाएँ।
2. वाहनों के आसपास पटाखे नहीं जलाएँ।
3. पटाखे जलाते समय सूती कपड़े पहनें सिन्थेटिक कपडे ज्वलनशील होते हैं।
4. पटाखे जलाते समय घर की खिड़कीऔर दरवाजे बन्द रखें। इससे आग लगने का खतरा घटेगा।
5. हाथ में रखकर फटाके नहीं जलाएँ। बच्चों को वयस्कों/बुजुर्गों की देखरेख में पटाखे जलाने दें।
6. साधारण जली हुई जगह पर तत्काल पानी डालें और दवा लगाएँ।
7. घर में पानी, रेत, कम्बल और दवा काइन्तजाम रखें।
8. धुएँ से दूर रहें। धुएँ में श्वास नहीं लें।
9. जोरदार आवाज करने वाले फटाकों से छोटे बच्चों और अस्वस्थ वृद्धों को दूर रखें। उनसे बहरेपन का खतरा होता है।
भारत का संविधान और अधिकार :
स्वास्थ्य मानकों की अनदेखी, बाल मजदूरी नियमों की अवहेलना या असावधानी मानव अधिकारों के उलंघन के प्रति सरकार गंभीर है । उल्लेखनीय है कि भारत का संविधान रेखांकित करता है कि स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराना केवल राज्यों की ही जिम्मेदारी नहीं है अपितु प्रत्येक नागरिक का दायित्व भी है। आर्टिकल 48 अ और आर्टिकल 51 अ (जी) तथा आर्टिकल 21 की व्याख्या से उपर्युक्त तथ्य उजागर होते हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने सुरक्षित सीमा (125 डेसीबल) से अधिक शोर करने वाले पटाखों के जलाने पर रोक लगाई है। इसके अलावा शान्तिपूर्ण माहौल में नींद लेने के आम नागरिक के फंडामेंटल अधिकार की रक्षा के लिये उच्चतम न्यायालय ने दीपावली और दशहरे के अवसर पर रात्रि 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक पटाखों के चलाने को प्रतिबन्धित किया है। पटाखों का उपयोग हमारी परम्परा का अंग है। चूँकि हमारी परम्परा पर्यावरण की पोषक रही है इसलिये हमें पर्यावरण हितैषी और सुरक्षित दीपावली मनाना चाहिए। यह काम प्रत्येक नागरिक अपने स्तर पर खुद कर सकता है।
पर्यावरण हितैषी और सुरक्षित दीपावली मनाने के लिये निम्न कदम उठाए जा सकते हैं-
1. पटाखों का कम-से-कम उपयोग। इससे पर्यावरणी नुकसान कम होंगे। कम कचरा पैदा होगा। कचरा निष्पादन पर अधिक बोझ नहीं पड़ेगा।
2. कतिपय प्राकृतिक संसाधनों के बेतहाशा दोहन को लगाम लगाने के लिये कम-से-कम अनावश्यक खरीद। इससे पर्यावरणी नुकसान का स्तर का ग्राफ थमेगा।
3. दीपावली पर कम अवधि के लिये बिजली का उपयोग। ऐसा करने से बिजली उत्पादन करने वाले संसाधनों की खपत पर अनावश्यक बोझ नहीं पड़ेगा।
प्रदूषण मुक्त स्वस्थ जीवन जिये
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By #drlalthadani
Monday, November 5, 2018
Know 4 Hormones 2 be Happy : Dr Deepa/ Dr Lal Thadani
Know 4 Hormones 2 be Happy : Dr Deepa/ Dr Lal Thadani
There are four hormones which determine our happiness:*
1. Endorphins,
2. Dopamine,
3. Serotonin, and
4. Oxytocin.
It is important we understand these hormones, as we need all four of them to stay happy.
Let's look at the first hormone the Endorphins. *When we exercise, the body releases Endorphins.* This hormone helps the body cope with the pain of exercising. We then enjoy exercising because these *Endorphins will make us happy. Laughter is another good way of generating Endorphins. We need to spend 30 minutes exercising every day to get our day's dose of Endorphins.*
*The second hormone is Dopamine*. In our journey of life, we accomplish many little and big tasks, it releases various levels of Dopamine. When we get appreciated for our work at the office or at home, we feel accomplished and good, that is because it releases Dopamine. *This also explains why most housewives are unhappy since they rarely get acknowledged or appreciated for their work*.
*The third hormone Serotonin is released when we act in a way that benefits others.* When we transcend ourselves and give back to others or to nature or to the society, it releases Serotonin. Even, providing useful information on the internet like writing information blogs, answering peoples questions on Quora or Facebook groups will generate Serotonin. That is because we will use our precious time to help other people via our answers or articles.
*The final hormone is Oxytocin, is released when we become close to other human beings.* When we hug our friends or family Oxytocin is released. *The "Jadoo Ki Jhappi" from Munnabhai does really work.* Similarly, when we shake hands or put our arms around someone's shoulders, various amounts of Oxytocin is released.
*So, it is simple :*
*We have to exercise every day to get Endorphins,*
*We have to accomplish little goals and get Dopamine,*
*We need to be nice to others to get Serotonin &*
*Finally hug our kids, friends, and families to get Oxytocin and we will be happy. When we are happy, we can deal with our challenges and problems better.*
Thursday, October 18, 2018
इंसानियत जिंदा रखने के लिए जिंदा होना जरूरी है । भुखमरी को जो भूल जाए वो मगरूरी है ।। डॉ लाल थदानी
इंसानियत जिंदा रखने के लिए जिंदा होना जरूरी है ।
भुखमरी को जो भूल जाए वो मगरूरी है ।। डॉ लाल थदानी
कुछ दिनों से इस तस्वीर ने उद्ववेलित कर रखा है । फ़ोटो खींचने के दौरान फोटोग्राफर की आंख से पानी अवश्य बहा होगा और उस दृष्टि को उसे सर्वोच्च पुरुस्कार से भी नवाजा गया । मगर इनाम पाने वाले को एक की छोटी सी टिपण्णी ने उसे अंदर तक इतना झकझोर दिया कि उसने उहापोह से निकलने के लिए अपनी इहलीला समाप्त करना बेहतर समझा ।
खैर भुखमरी की जिस तस्वीर का जिक्र किया गया है उसे नाम दिया गया था "The vulture and the little girl "
इस तस्वीर में एक गिद्ध भूख से मर रही एक छोटी लड़की के मरने का इंतज़ार कर रहा है ।
इसे एक साउथ अफ्रीकन फोटो जर्नलिस्ट केविन कार्टर ने 26 मार्च 1993 में सूडान के अकाल के समय खींचा था और इसके लिए उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । लेकिन कार्टर इस सम्मान का आनंद कुछ ही दिन उठा पाए क्योंकि कुछ महीनों बाद 33 वर्ष की आयु में उन्होंने अवसाद से आत्महत्या कर ली ।
दरअसल जब वे इस सम्मान का जश्न मना रहे थे तो सारी दुनिया में प्रमुख चैनल और नेटवर्क पर इसकी चर्चा हो रही थी । उनका अवसाद तब शुरू हुआ जब एक 'फोन इंटरव्यू' के दौरान किसी ने पूछा कि उस लड़की का क्या हुआ? कार्टर ने कहा कि वह देखने के लिए रुके नहीं क्यों कि उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी । इस पर उस व्यक्ति ने कहा ,
"मैं आपको बता रहा हूँ कि उस दिन वहां दो गिद्ध थे जिसमें एक के हाथ में कैमरा था !!!"
बताया गया कि कार्टर फोटो शूट से पूर्व वहां 20 मिनट तक रुका रहा कि कब बच्ची गिरे और गिद्ध झपटा मारे ।
इस कथन के भाव ने कार्टर को इतना विचलित कर दिया कि वे अवसाद में चले गये और अंत में आत्महत्या कर ली ।
किसी भी स्थिति में कुछ हासिल करने से पहले मानवता आनी ही चाहिए । कार्टर आज जीवित होते अगर वे उस बच्ची को उठा कर यूनाईटेड नेशन्स के फीडिंग सेंटर तक पहुँचा देते जहाँ पहुँचने की वह कोशिश कर रही थी ।
आज भी हंगर इंडेक्स में कई देश बदतर स्थिति में है । मगर फाइव स्टार होटलों या एसी कमरों में बैठकर निर्णय लेने वाले अधिकारी या हृदयहीन जनप्रतिनिधि खुद हकीकत का सामना करने मैदान में उतरे तो स्थितियों को बदत्तर होने से पूर्व टाला जा सकता है । मगर क्या आज के भाई भतीजावाद के युग में ऐसा संभव है । आज दशहरा है । नवरात्रों का समापन भी है ।
प्रतीक स्वरूप बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में विजयदशमी पर्व हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । मगर हमारे अंदर के रावण को , अहंकार, लोभ, लालच, झूठ, दम्भ, आदि जैसे विकारों को क्या हम जला पाए हैं आज तक । काश ऐसा संभव हो पाता । काश मैं कुछ कर पाता ।
डॉ लाल थदानी
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Live Healthy (Dr.Lal)
Thursday, September 6, 2018
जातिगत कानूनन भेदभाव के खिलाफ आक्रोश / डॉ लाल थदानी
जातिगत कानूनन भेदभाव के खिलाफ आक्रोश / डॉ लाल थदानी
आज का भारत बंद आह्वान अत्यंत सफल रहा है । आमजन स्वेच्छा से इस आंदोलन से जुड़ा है । जिनको आरक्षण का वास्तव में लाभ मिलना चाहिए हम सभी चाहते हैं उन्हें लाभ मिले । मगर अभी तक रसूखदारों और ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारी, नेतागण, और उनके परिवारों को असहनीय लाभ पर लाभ मिल रहा है । आखिर कुछ तो मापदंड तय हो ।जन प्रतिनिधि और सरकारों को पता चलना चाहिए कि बांटो और राज करने की नीति अब भारत देश में न चला है और नहीं चलाई जा सकती है । भारत का जन-सामान्य जाग्रत हो चुका है और इस तरह के किसी भी जातिगत कानूनन भेदभाव के पूर्णतया खिलाफ है । इसकी हर स्तर पर भर्त्सना की जानी चाहिए , विरोध लाजिमी है और करना भी चाहिए ।
हम सभी को चाहिए कि भाई भाई को, समाज को आपस में बांटने वाले इस जातिगत भेदभावपूर्ण कानून का एकजुट विरोध करते हुए इसके प्रति लोगों को जागरुक करें ।
धन्यवाद
डाॅ लाल थदानी
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Tuesday, September 4, 2018
मेरा परिचय / डॉ लाल थदानी
मेरा परिचय
मैं किसी को दे ही क्या सकता हूँ
मेरे पास देने के लिए है भी क्या
मेरी शख्सियत,मेरी अहमियत,मेरा वजूद
मेरा परिचय कुछ भी नहीं शून्य बस एक बूँद
फिर भी मैं नकारा नहीं और ना ही स्वार्थी
मैं बूँद अमर हो जाऊं जो मिले कोई स्वाति
मेरा गम मेरा अपना है मगर मेरी खुशी पराई
खाक-ए-शरीर बाद भी जिंदा रहूंगा मेरे भाई
डॉ लाल थदानी
Monday, September 3, 2018
No one remembers the girl Yogamaya interchanged with Krishna, a boy baby Dr Lal Thadani
No one remembers the girl Yogamaya interchanged with Krishna, a boy baby
Dr Lal Thadani
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No one remembers the girl baby born on the same day who was interchanged with Krishna, a boy baby, to save his life. The boy's life was precious but the girl was born to sacrifice her life. Today is not only the birthday of Krishna but also of Yogamaya.
It is said that Yogmaya flew off to Heavens freeing herself from the clutches of Kansa while announcing to Kansa that your killer has been born. Scriptures do not clearly mention that she too got killed like other siblings of Krishna. However more knowledgeable are requested to throw light on it.
Yogmaya was also an incarnation of Shakti who came to be born along with the incarnation of Lord Vishnu to keep some old promise. When Kansa caught her by her feet and hurled her to the ground, she flew towards the heaven, saying “Kansa, your killer has already taken birth. I could have also killed you but since you caught me by my feet, I take it as your expression of humility and am pardoning you”.
*Krishna* was born in the darkness of the night, into the locked confines of a jail.
However, at the moment of his birth, all the guards fell asleep, the chains were broken and the barred doors gently opened.
Similarly, as soon as *Krishna* ( Chetna, Awareness ) takes birth in our hearts, all darkness ( Negativity ) fades.
All chains ( Ego, I, Me, Myself ) are broken.
And all prison doors we keep ourselves in ( Caste, Religion, Profession, Relations etc ) are opened.
And that is the real Message And Essence of Janmashtmi.
Wednesday, August 22, 2018
licensing / registration in healthcare
The Purpose of licensing / registration in healthcare
Sometimes I wonder what is the purpose of registration of doctors under the Indian Medical Council Act or State Medical Council Acts ? By the same token the question also arises what is the purpose of registration of establishments under Clinical Establishment Act , PCPNDT Act, Transplantation of Human Organs and Tissues Act, or a blood bank under Drugs and Cosmetics Act. The sole purpose to my mind is to have the power to cancel the registration in case of a misdeed , professional negligence , clerical error, or procedural lapse done by those registered under these Acts. However the question arises that should cancellation of such registration matter ? To the law abiding it causes severe distress and financial loss but only because they are law abiding and have invested time, money, effort , and sacrificed their youth to attain these registrations.
However when we look around ourselves we find that the rights and privileges of those who are registered legally under these acts are not defended by the very authorities who register them. You do not need to be registered in a state medical council under the Indian Medical Council Act to be appointed to office of physician in Government or to be entitled to sign or authenticate a medical or fitness certificate or any other certificate required by any law to be signed or authenticated by a duly qualified medical practitioner. To be an Authorized medical attendant empanelled with various public sector enterprises you also do not need to be registered under IMC Act.
Though a clause in IMC Act mentions some mild punishment (slap on the wrist) for those who practice modern scientific medicine without registration but to an application by MLAG, Medical Council of India under RTI replied that it does not have any data regarding those punished for violation of this law. It does however have voluminous data on doctors who have been prosecuted by it on its website and same is the situation with State Medical Councils. Given the soft approach towards those who blatantly break the law should it matter that those qualified get themselves registered. Look around you once to find innumerable quacks, RMPs, Bengali doctors , pharmacists and Crosspaths who are rampant and proliferating with each passing day. If you do not need an MBBS degree to practice Modern Scientific Medicine, let the regulators and the judiciary stand up and say so.
Another aspect is that with the current law of cumbersome re registration in place , the Punjab Medical Council which has 49395 doctors registered under it has listed only 16662 as eligible to vote. The corollary being the rest of 32733 doctors are either dead, or living abroad or practicing without valid registration. Even IMA has given reply in parliament that about 80% doctors registered with it are currently practicing (with or without valid registration). The thrust of the power used by medical councils is against private doctors nearly all of whom have wilted under the whip of the state medical council and complied with the law by re registering. Most doctors working in institutes or in Government services once registered do not opt for re registrations. If a doctor continuing to practice medicine without mandatory 5 yearly registration is an illegality then it cannot be selectively enforced only on a special group.
Those who wish to do illegal sex determination in mobile ultrasound clinics obviously do not register themselves under PCPNDT Act. Dr Amit Kumar did close to 600 (that are known) odd illegal paid kidney transplants in different states not by getting registered under TOHOA. The “nursing homes” where illegal second trimester MTPs or amputations for begging are conducted are obviously not registered under any MTP Act or Nursing Home Registration Act. But what action is taken by those in authority to check these illegal establishments; None. Dr Amit Kumar was arrested number of times and granted bail or released by police all with help of money. It actually makes financial sense to run a clinical establishment illegally and pay the inspectors and the regulators the bribes rather than try to follow the innumerable standards and fulfill the criterion for various registrations and the 27 licenses needed to run a small nursing home.
Let registration of qualified doctors not be a tool to harass them only. Let it also give them the privileges of being registered. If there is no deterrent for those who practice without registration then the incentive to get registered goes. To those who practice illegally with impunity the authorities like State Medical Councils, Appropriate Authorities under special Acts are toothless paper tigers. Unless strong action is taken by the regulators against those who are not registered with it, they lose the moral right to police those who are. Government, judiciary and administrative machinery has often used the stick to make Doctors fall in line without first giving them their rights and privileges due to them. Till that time law of natural justice demands that the "License-permit Raj" in healthcare be dismantled ASAP.
Dr Neeraj Nagpal
Convenor,Medicos Legal Action Group, Managing Director MLAG Indemnity,
Ex President IMA Chandigarh
Director Hope Gastrointestinal Diagnostic Clinic,
1184, Sector 21 B Chandigarh
09316517176 , 9814013735
Forwarded as received
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Friday, July 27, 2018
Monday, July 16, 2018
Another Blessed Morning
Thank you God
and Well wishers
for another
Blessed Morning
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Friday, July 13, 2018
***** हैप्पी बर्थ डे पापा ***** डॉ लाल थदानी
***** हैप्पी बर्थ डे पापा *****
डॉ लाल थदानी
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मेरी रब से एक गुज़ारिश है,
छोटी लगानी एक सिफारिश है,
रहे जीवन भर खुश मेरे पापा
बस इतनी सी मेरी ख्वाहिश है.
इस जहां में सिर्फ आप ही वह शख्स हो
जिसने मेरे हर फैसले पर,
हर कदम पर मुझ पर भरोसा किया।
एक अच्छे पिता होने के लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूं।
आपको जन्मदिन बहुत मुबारक हो।
बार बार यह दिन आए,
बार बार यह दिल गाए,
पापा जिए हजारों साल यह है
मेरी आरजू, हैप्पी बर्थडे टू यू पापा
आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
***** हैप्पी बर्थ डे पापा *****
डॉ लाल थदानी
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ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया हमको,
अपनी नींद दे कर चैन से सुलाया हमको,
अपने आंसू छुपा कर हंसाया हमको,
कैसे याद ना रहेगा ऐसे पापा का जन्मदिन हमको,
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें।
***** हैप्पी बर्थ डे पापा *
दुनिया के लिए आप एक मिसाल हो,
एक अच्छे अभिभावक की हर खूबी आप में है।
मैं कभी लफ़्ज़ों में बयां नहीं कर पाया मगर पापा मैं
भी आपके जैसा बनने का ख्वाब देखता हूं।
86th
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
Tuesday, June 19, 2018
अल्फ़ाज़ : डॉ लाल थदानी
अल्फ़ाज़ : डॉ लाल थदानी
मेरे लफ्जों को ....
वह तासीर दे मौला ,
लोग वाह-वाह ना करें ...
परवाह करें...!!
डॉ लाल थदानी
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drlal2010@gmail.com
Wednesday, June 13, 2018
रक्त दान जीवन दान: डॉ दीपा डॉ लाल थदानी
..🇮🇳 रक्त दान जीवन दान*..🇮🇳*जन्मदिन हो या त्यौहार..*🌹*रक्तदान कर दो उपहार...
1.डॉ लाल थदानी, उप मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अजमेर ।
2.डॉ दीपा थदानी, प्रोफेसर
जे एल एन मेडिकल कॉलेज अजमेर ।
रक्तदान जीवनदान है। हमारे द्वारा किया गया रक्तदान कई जिंदगियों को बचाता है। इस बात का अहसास हमें तब होता है जब हमारा कोई अपना खून के लिए जिंदगी और मौत के बीच जूझता है। उस वक्त हम नींद से जागते हैं और उसे बचाने के लिए खून के इंतजाम की जद्दोजहद करते हैं। हममें से कोई भी कभी भी अनायास दुर्घटना या बीमारी का शिकार हो सकता है ।
आज हम सभी शिक्षित व सभ्य समाज के नागरिक है, फिर भी रक्तदान के नाम से अधिकांश सिहर उठते हैं । ऐसे में आवश्कता है रक्तदान के प्रति लोगों में जागरूकता लाने की । उन्हें बताने कि एक समय में पूरे
शरीर में हर समय 5 लीटर रक्त दौड़ता रहता है । हर तीसरे महीने नया खून बनता है ।रक्तदान के दौरान एक
यूनिट ब्लड में 450 मि0ली0 रक्त ही लिया जाता है। जानकर आश्चर्य होगा कि विश्व में प्रतिवर्ष 8 करोड़ यूनिट से ज्यादा रक्त, रक्तदान से जमा होता है। इसमें विकासशील देशों का योगदान 38 प्रतिशत होता है, जबकि यहाँ दुनिया कि 82 प्रतिशत आबादी रहती है.पर दुर्भाग्यवश अपना भारत इसमें काफी पिछड़ा हुआ है या यूँ कहें कि लोग जागरूक नहीं हैं। हर वर्ष भारत को 90 लाख यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है, पर जमा मात्र 60 लाख यूनिट की हो पाता है।
कौन कर सकता है रक्तदान :
कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी आयु 18 से 68 वर्ष के बीच हो।
जिसका वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो।
जिसके रक्त में हिमोग्लोबिन का प्रतिशत 12 प्रतिशत से अधिक हो।
ये नहीं करें रक्तदान :
महावारी के दौर से गुजर रही महिला।
बच्चों को स्तनपान कराने वाली महिला।
अगर आप कैंसर के मरीज़ हैं।
रक्तदान से जुड़े तथ्य (Facts related to blood donation se rakt daan ke labh)
एक वयस्क पुरुष / स्त्री में 5-6 लीटर तक रक्त होता है।
कोई भी व्यक्ति हर तीन माह में रक्त दान कर सकता है।
रक्त में प्लाज्मा नामक प्रवाही होता है।
450 मि.ली. रक्त से 3 लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।
रक्त दान के लाभ, हर 2 सेकंड में भारत में किसी न किसी व्यक्ति को रक्त की आवश्यकता होती है।
भारत में रक्त दान योग्य व्यक्तियों में सिर्फ 4% ही रक्त दान करते हैं।
75% व्यक्ति वर्ष में एक या दो बार रक्त दान करते हैं।
3 में से 1 व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी रक्त की आवश्यकता पड़ती है।
रक्त कोशिकाओं के प्रकार:
श्वेत रक्त कोशिकाएं जो रोगों से रक्षा करती हैं।
प्लेटलेट्स जो रक्त के बहने पर रक्त का थक्का जमा देते हैं।
रक्त दान के लाभ, लाल रक्त कोशिकाएं जो फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर प्रत्येक कोशिका में पहुंचाती हैं और कार्बनडाइऑक्साइड को वापस फेफड़ों तक लाती हैं।
रक्तदान के स्वास्थ्य लाभ
कई कारणों से इन दिनों रक्तदान जरूरी होता जा रहा है, लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि रक्त देने से जरूरत मंद लोगों को जीवन दान मिलता है, बल्कि रक्तदाता को स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं।
1. दिल से जुड़ी बीमारियों के होने का खतरा कम हो जाता है.
2. टल जाता है कैंसर का खतरा
3. वजन कंट्रोल करने में मददगार
4. नियमित अंतराल पर रक्तदान करने से शरीर में आयरन की मात्रा संतुलित रहती है और रक्तदाता को हृदय आघात से दूर रखता है।
5. इससे रक्तदाता व्यक्ति को विभिन्न अंगों में कैंसर के रिस्क से दूर रखता है।
6. यह कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और रक्तचाप को नियंत्रित करता है।
7. इससे ज्यादा कैलोरी और वसा को बर्न होता है, और पूरे शरीर को फिट रखता है।
8. रक्तदान करने से न केवल किसी व्यक्ति का जीवन बचता है, बल्कि रक्तदाता में नई कोशिकओं का सृजन करता है।
9. इससे आयरन का स्तर नियंत्रित करता है, जिससे रक्त को गाढ़ा बनाता है और उसमें फ्री रेडिकल डैमेज बढ़ता है।
रक्तदान स्लोगन – Slogans on Blood Donation
1.रक्तदान ! जरूरतमंद को जीवन दान
2.रक्तदान कीजिये |
मानवता के हित में काम कीजिये
3.मेरा दिल कहता है एक बात |
रक्तदान करो हर बार ||
4.रक्तदान सबसे बड़ा दान |
जो है एक पुण्य का काम ।।
5.अगर करना हो पुण्य काम,
देरी न करिये, कीजिये रक्तदान ||
6.रक्तदान करने से नहीं होती शरीर में कमजोरी |
रक्तदान में कभी मत करना सोचा समझी ||
7.गुप्तदान की छोड़िये बात |शीघ्र रक्तदान की करिये बात ||
8.यदि करना हो मानव सेवा |
रक्तदान है उत्तम सेवा |। 9.रक्तदान मानव कल्याण | रक्तदानी है महान ||
10.आपका रक्तदान,जरूरतमंद को जीवनदान |
11.रक्तदान करने मै कभी पीछे मत हटना |
रक्तदान करके दुर्घटना ग्रस्त का जीवन बचाना || 12.रक्तदान को बनाइये अभियान |रक्तदान करके बचाइये जान || 13.मानवता के हित मे काम कीजिये |
रक्तदान मे भाग लीजिये ||
14.रक्तदानी महा दानी |
15.अन्धविश्वास की छोड़िये बात
रक्तदान की करिये शुरुआत ||
16.रक्तदानी ईश्वर को लगते प्यारे |
रक्तदान करके किसी का जीवन संवारे ||
17.आप है ईश्वर की अमूल्य कृति |
रक्तदान करने की सदैव रखिये प्रवृत्ति |
18. मैं हूँ इंसान और इंसानियत का मान करता हूँ,
किसी की टूटती सांसों में हो फिर से नया जीवन
मैं बस यह जानकर अक्सर 'लहू' का दान करता हूँ !!
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Tuesday, June 12, 2018
आप हैं तो देश सुरक्षित है - डॉ लाल थदानी
आप हैं तो देश सुरक्षित है - डॉ लाल थदानी
www.drlalthadani.in
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संकल्प क्रांति परिवार की सम्मानीय सदस्य श्रीमती बबिता शर्मा एवं शहीद श्री सुभाष शर्मा जी के इकलौते बेटे क्षितिज ने सेना में लेफ्टिनेंट बनकर बढ़ाया.. कोटा राजस्थान का गौरव और देश का मान बढ़ाया है।
🏆शौर्य चक्र से सम्मानित बीएसएफ के डिप्टी कमांडेंट रहे शहीद
सुभाष शर्मा 16 अप्रैल 1996 को जम्मू-कश्मीर में ड्यूटी के दौरान आतंकियों को रोकते वक्त शहीद हो गए थे तब क्षितिज मात्र नौ महीने के थे.. उनकी मम्मी बबीता शर्मा ने
बेटे की अच्छी परवरिश कर देश सेवा करने लायक बनाया.. क्षितिज ने भी अपनी मां के सपनों को साकार करते हुए National Defence Academy में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया ।
# क्षितिज को हार्दिक शुभकामनाएं व बबीता जी को बधाई।
आप हैं तो देश सुरक्षित है ।
जय हिंद !! वन्दे मातरम ।
Friday, June 8, 2018
Live every Moment/ Dr Deepa Dr Lal Thadani
Eternal relations are
just like water.
No color, no taste,
no shape, no place
but still very important
for life.
Everyday Every moment
will not come back.
So No fights, No anger
Live Every Moment
Live and Love Life ...
Enjoy Life
Life is very beautiful.
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Sunday, June 3, 2018
विश्व पर्यावरण दिवस 2018 मात्र प्रतीकात्मक नहीं बल्कि एक मिशन : डॉ.दीपा /डॉ.लाल थदानी
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विश्व पर्यावरण दिवस 2018 मात्र प्रतीकात्मक नहीं बल्कि एक मिशन : डॉ.दीपा /डॉ.लाल थदानी
विश्व पर्यावरण दिवस 2018
की थीम है प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति ।
इस वर्ष की वैश्विक मेजबानी भारत को मिली है।इसलिए भी विश्व पर्यावरण दिवस 2018 मात्र एक प्रतीकात्मक समारोह नहीं बल्कि एक मिशन है।पर्यावरण हमारे जीवन का एक महत्वपूर्णअंग है।हम अपने दैनिक जीवन में पर्यावरणीय संसाधनो का प्रयोग करते है। । कोयला और पेट्रोलियम जैसे गैर नवीकृत संसाधनो का प्रयोग करतेसमय विशेष ध्यान रखना चाहिए जो समाप्त हो सकते है। भूमिऔर पानी के प्रदूषण ने पौधो, जानवरो औरमानव जाति को प्रभावित किया है। अनुमान हैकि प्रत्येक वर्ष लगभग पाचं से सात मिलियनहेक्टयेर भूमि की हानि हो रही है। मानव कीसभी क्रियाओ का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है । जनसंख्या में वृद्धि केवल प्राकृतिकपर्यावरण के लिए ही समस्या नही है । अपितु यह पर्यावरण के अन्य पक्षों जैसे सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक पक्षो के लिए भीसमस्या है।
शहरीकरण का परिणाम है- धूल, बीमारी और विनाश। बढ़ते शहरीकरण की स्थिति में सफाई, बीमारी, आवास, जल आपूर्ति और बिजली की समस्याएं निरतंर बढ़ती रहती है।
यातायात और संचार साधनो के विकास केसाथ औद्योगिकीकरण ने न केवल पर्यावरणको प्रदूषित किया है अपितु प्राकृतिकसंसाधनो में भी कमी पैदा कर दी है। दोनोप्रकार से भारी हानि हो रही है।
पर्यावरण प्रदुषण / समस्याएं को बढ़ातीप्लास्टिक थैलियाँ
मानव द्वारा निर्मित चीजों में प्लास्टिक थैलीएक ऐसी है जो माउंट एवरेस्ट से लेकर सागरकी तलहटी तक सब जगह मिल जाती है।पर्यटन स्थलों, समुद्री तटों, नदी-नाले-नालियों, खेत-खलिहानों, भूमि के अन्दर-बाहर सबजगहों पर आज प्लास्टिक कैरी बैग्स अटे पड़ेहुए हैं। लगभग 3 दशक पहले किये गये इसअविष्कार ने ऐसा प्रभाव जमा दिया है कीआज प्रत्येक उत्पाद प्लास्टिक बैग में मिलताहै और घर आतेआते ये थैलियां कचरे मेंतब्दील होकर पर्यावरण को हानि पहुंचा रहीहैं। प्लास्टिक थैलियों की वजह से --वायुप्रदुषण, ध्वनि प्रदुषण और
जल प्रदुषण होरहा है ।
वायु प्रदुषण धुएं के द्वारा होता। मीलोंकारखानों और वाहनों द्वारा छोड़े गये धुएं सेपालीथिन का कचरा जलाने से कार्बनडाईआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड एवंडाईआक्सींस जैसी विषैली गैस उत्सर्जितहोती हैं। वायु-प्रदुषण होता है। । हम प्रदूषितवायु में सांस लेते है उसके परिणामस्वरूप हीफेफड़ों की बीमारियां, सिरदर्द सांस, त्वचाऔर अन्य बीमारियां हो
जाती हैं । कैडमियमऔर जस्ता जैसी विषैलीधातुओं का इस्तेमालजब प्लास्टिकथैलों के निर्माण में किया जाता है , तो हृदय का आकार बढ सक़ता है और मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होकर नुकसान पहुंचता है। प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहनेसे लोगों के खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जातीहै।
प्लास्टिक की बोतल-टिफिन से कैंसर:
हाल ही में रिसर्च से ये बात सामने आई है किप्लास्टिक के बोतल और कंटेनर के इस्तेमालसे कैंसर हो सकता है। प्लास्टिक के बर्तन मेंखाना गर्म करना और कार में रखे बोतल कापानी कैंसर की वजह हो सकते हैं। कार मेंरखी प्लास्टिक की बोतल जब धूप या ज्यादातापमान की वजह से गर्म होती है तोप्लास्टिक में मौजूद नुकसानदेह केमिकलडाइऑक्सिन का रिसाव शुरू हो जाता है। येडाईऑक्सिन पानी में घुलकर हमारे शरीर मेंपहुंचता है।
गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाकप्लास्टिक:
प्लास्टिक की वजह से महिलाओं में ब्रेस्ट
कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। सिर्फ पन्नी हीनहीं, बल्कि रिसाइकिल किए गए रंगीन यासफेद प्लास्टिक के जार, कप या इस तरह केकिसी भी उत्पाद में खाद्य पदार्थ या पेय पदार्थका सेवन स्वास्थ्य के लिए घातक सिध्द होसकता है।इनमें मौजूद बिसफिनोल ए नामक जहरीला पदार्थ बच्चों और गर्भवतीमहिलाओं के लिए खतरनाक है। बिसफिनोल ए शरीर में हार्मोन बनने की प्रक्रिया और उनकेस्तर को भी प्रभावित करता है।इससे प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।
प्लास्टिक के घातक तत्वों के खाद्य पदार्थों एवंपेय पदार्थों के माध्यम से शरीर में पहुंचने सेमस्तिष्क का विकास बाधित होता है। इसकाबच्चों की स्मरण शक्ति पर सर्वाधिक विपरीतअसर पड़ता है।यह गर्भस्थ शिशु के विकास को भी रोकसकती है।
धुआं ओजोन परत को नुकसान पहुंचाता है जो ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा
कारण है ।
प्लास्टिक थैलियों के बढ़ते प्रचलन से सफाईव्यवस्था में जबर्दस्त अवरोध पैदा हो रहा है।लोगों द्वारा घरों आदि का कूड़ा-करकटप्लास्टिक की थैलियों में बन्द कर फेंक दियाजाता है।
प्रायः हरी साग सब्जियों के छिलके एवं अन्य बेकार खाद्य पदार्थ भी पॉलीथीन की थैली मेंफेंक दिए जाते हैं। प्लास्टिक के लिफाफों से फैली गंदगी से आज पीलिया, डायरिया, हैजा, आंत्रशोथ जैसी बीमारियां फैल रही है।पॉलीथीन को पशु छिलकों आदि के साथ खा जाते हैं जो पशुओं के पेट में जाकर कभी कभी आँतों में फँस जाता है। इस तरह पशुओं की मौत का कारण बन जाता है । नतीजा, जीव जंतुओं की कई जातियां दुर्लभ होती जा रही है।
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार पॉलीथिनसीवर जाम का सबसे बड़ा कारण है। प्लास्टिक के 20 माइक्रोन
या इनसे पतली पॉलीथीन की थैलियाँ नाले नालियों और सीवर लाइनों में पहुँचकर उन्हें अवरुद्ध कर देती हैं। यदि इसे दस बीस वर्षों तक भी जमीन में दबाए रखा जाए यह तब भी नहीं गलती है। कुछ पॉलीथिन बैग्स करीब 500 या 600 सालों में गलते हैं। इससे गंदे पानी का बहाव बाधित होता है जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। बिनाबाढ़ के मोहल्ले में भी बाढ़ की शंका पैदाकरता हैं । पानी का रुकना गंदगी का साम्राज्य फैलना हैं मलेरिया फैलने का कारण बनता हैं ।
अपशिष्ट पदार्थ और कूड़ाकचरा नदियों में फेंक दिया जाता है इससे जल प्रदूषित होजाता है । हानिप्रद कीटाणु उत्पन्न हो जाते है।हम प्रदूषित जल पीते हैं और अनेक बिमारियां हो जाती हैं।
प्लास्टिक जब गलते हैं तो मिट्टी
में कई तरह केहानिकारक रसायन छोड़ देते हैं जो बाद में नदी-नालों से होते हुए समुद्री जीव जंतुओं केलिए जानलेवा साबित होते हैं।पॉलीथीन नष्ट न होने के कारण यह भूमि की उर्वरा शक्ति को खत्म कर रही है। कृषि भूमिपर जहाँ कहीं भी जाकर मिट्टी में दब जाता हैफसलों के लिए उपयोगी कीटाणुओं को मारदेती है । इनसे बड़ा नुकसान यह होता है वहाँ कोई पौधा नहीं उग पाता हैबांग्लादेश में वर्ष 2002 में पॉलीथिन बैग्स कोइसलिए प्रतिबंधित करना पड़ा था क्योंकि ये1988 और 1998 में वहां कई इलाकों में बाढ़आने की वजह तक बन गए थे। । मशीनों औरवाहनों, जैसे – मोटरकार, बस व ट्रको का शोर वातावरण में मिल जाता है। इसे ध्वनि प्रदूषण कहते है।यह भी खतरनाक है। यह हमारे कानों और दिमाग पर प्रभाव डालता है। मनुष्य बहरा या कम सुननेवाला हो सकता हैं।
प्लास्टिक थैली बनी जहर की पोटली!
एक अनुमान के मुताबिक हर साल धरती पर500 बिलियन से ज्यादा पॉलीथिन बैग्सइस्तेमाल में लाए जाते हैं।
सारे विश्व में एक साल में दस खरब प्लास्टिकथैलियां काम में लेकर फेंक दी जाती हैं।अकेले जयपुर में प्रतिदिन 35 लाख लोगप्लास्टिक का कचरा बिखेरते है और 70 टनप्लास्टिक का कचरा सडकों, नालियों औरखुले वातावरण में फैलता हैं। केन्द्रीयपर्यावरण नियन्त्रण बोर्ड के एक अध्ययन केमुताबिक एक व्यक्ति एक साल में 6 से 7 किलो प्लास्टिक कचरा ( पॉलीथिन बैग्स ) फैकता है। पूरे राजस्थान में प्लास्टिक उत्पाद-निर्माण की 1300 इकाइयाँ है, तो इस हिसाबसे पूरे देश में कितनी होंगी, यह सहज अनुमानका विषय है। आज देश भर में 85 फीसदी सेअधिक उत्पाद प्लास्टिक पैकिंग में ही आ रहेहैं। इस समय विश्व में प्रतिवर्ष प्लास्टिक काउत्पादन 10 करोड़ टन के लगभग है औरइसमें प्रतिवर्ष उसे 4 प्रतिशत की वृध्दि हो रहीहै। भारत में भी प्लास्टिक का उत्पादन वउपयोग बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। औसतनप्रत्येक भारतीय के पास प्रतिवर्ष आधा किलोप्लास्टिक अपशिष्ट पदार्थ इकट्ठा हो जाता है।इसका अधिकांश भाग कूड़े के ढेर पर औरइधर-उधर बिखर कर पर्यावरण प्रदूषणफैलाता है।दुनिया भर में हर सेकंड आठ टनप्लास्टिक बनता है. हर साल कम से कम 60 लाख टन प्लास्टिक कूड़ा समुद्र में पहुंच रहाहै. वैज्ञानिकों का कहना है कि महासागर भीबुरी तरह इस कचरे से भर गए हैं. धोखे सेपॉलीथिन खाने के कारण हर साल दुनिया भरमें एक लाख से अधिक व्हेल मछली, सीलऔर कछुए सहित अन्य जलीय जंतु मारे जातेहैं. जबकि भारत में 20 गाय प्रतिदिनपॉलीथिन खाने से मर रही हैं. इतना ही नहींसैकड़ों सालों तक नष्ट न होने वाली पॉलीथिनसे नदी नाले ब्लॉक हो रहे हैं और जमीन कीउत्पादकता पर भी असर पड़ रहा है.
1995 में भारत में 7916 टन प्लास्टिक कचरेका आयात किया। प्लास्टिक कचरे केअतिरिक्त भारत ने 1993 में 502 टन लेडकचरा, 346 टन लैड बैटरी कचरा, 30,498 टन टिन, कॉपर और अन्य धातुओं का कचराआयात किया। 1993 के बाद से भारत मेंकचरे का आयात बढ़ रहा है।
प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध
प्लास्टिक थैलियों के उद्योगों कोउत्पादकताओं को भले ही क्षणिक फायदाहोता हो कुछ फायदा हो रहा हो औरउपभोक्ताओं को भी सामान ले जाने में सुविधामिल रही हो लेकिन यह क्षणिक लाभपर्यावरण को दीर्घकालीन नुकसान पहुंचा रहाहै। कुछ लोग 20 माइक्रोन से पतले प्लास्टिकपर प्रतिबंध लगाने की वकालत कर उसमेंअधिक मोटे प्लास्टिक को रिसाइक्लड करनेका समर्थन करते है लेकिन वह रिसाइक्लड प्लास्टिक भी एलर्जी, त्वचा रोग एवं पैकिंगकिये गये खाद्य पधार्थों को दूषित करता है।
इसलिए हर तरह की प्लास्टिक बैग / प्लास्टिक थैलियों पर पूर्णतया प्रतिबंध लगायाजाना जनहित में जरुरी हैं।
प्लास्टिक कचरा प्रबंधन हेतु कार्ययोजनायें
पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रि-साइकिंल्डप्लास्टिक मैन्यूफैक्चर ऐंड यूसेज रूल्स, 1999 जारी किया था, जिसे 2003 में,पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1968 केतहत संशोधित किया गया है ताकि प्लास्टिककी थैलियों और डिब्बों का नियमन औरप्रबंधन उचित ढंग से किया जा सके। भारतीयमानक ब्यूरो (बीआईएस) ने धरती मेंघुलनशील प्लास्टिक के 10 मानकों के बारे मेंअधिसूचना जारी की है।
प्लास्टिक से परहेज का कारण:
• अधिकतर प्लास्टिक तेलों से बनते हैं,जो स्वयं में गैर-नवीकरणीय स्रोत हैं।
• प्लास्टिक अत्यधिक ज्वलनशील हैं।इसलिए आग भड़कने की सम्भावना ज्यादारहती है
• प्लास्टिक में लिपटे पदार्थों के खाने सेपशुओं का दम रहा है और बीमारियों से मररहे हैं।
• प्लास्टिक के उपयोग से नदी- नाले में रुकावट उत्पन्न हो रही है।
•जलीय जीव जंतु समाप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।
पॉलीथिन का विकल्प ही समाधान
पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए हमें कपड़ा, जूट, कैनवास, नायलान और कागज के बैग का इस्तेमाल सबसे
अच्छा विकल्प है।सरकार को पॉलीथिन के विकल्प पेश कर रहे उद्योगों को कुछ वित्तीय प्रोत्साहन देना चाहिए । साथ इन उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए जनता में जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। यहां, ध्यान देने की बात है कि कागजकी थैलियों के निर्माण में पेड़ों की कटाईनिहित होती है और उनका उपयोग भी सीमितहै। इसके लिए लोगों को भी अपनी आदत मेंबदलाव लाना चाहिए। जब भी घर से बाजारके लिए निकलें कपड़ा या जूट का बैग साथलेकर जाएं। आदर्श रूप से, केवल धरती मेंघुलनशील प्लास्टिक थैलियों का उपयोग हीकिया जाना चाहिये। जैविक दृष्टि सेघुलनशील प्लास्टिक के विकास के लियेअनुसंधान कार्य जारी है।
पॉलीथिन भगाओ पर्यावरण बचाओ एक मिशन
जिस तरह से पर्यावरण खराब हो रहा है अगर समय रहते उस पर ध्यान नहीं दिया गया तोआने वाली पीढ़ी को इसका खामियाजाभुगतना पड़ेगा । पूरे देश को एकजुटहोकर इस मुहिम में जुटना होगा और हर एकव्यक्ति अगर अपने आस-पास के 10 लोगों मेंभी प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को लेकरजागरुक करे तो रोजमर्रा के इस्तेमाल में होनेवाले प्लास्टिक से बढ़ते खतरे से लोगों कोबचाया जा सकता हैं।
हमें पर्यावरण का सम्मान करना चाहिए।योजनाबद्ध औद्योगीकरण होना चाहिए। हमेंअधिक से अधिक पेड़ उगाने चाहिए।आज लोगों को लग रहा है कि गर्मी बहुत लगरही है। पर कब तक AC का सहारा लेंगे, आज हिन्दुस्तान में 150 करोड़ पेड़ कीजरूरत है।
अभी तो यह शुरुआत हैं। 45 से 50 डिग्री को55 से 60 होने में देर नहीं लगेगी। अभी सेसमझकर पौधे लगाने होंगे क्योंकि एक पौधेको बड़ा होने मे 5 से 7 साल लग जाएगे।
सब कुछ सरकार पर मत छोडिये।
वृक्षारोपण के फायदे
1. शुद्ध ऑक्सीजन मिलता है ।
2. हानिकारक गैसों, जो पर्यावरण को दूषितकरते हैं,को अवशोषित करता है । कार्बनमोनो-ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड औरअन्य हानिकारक गैसों और वाहनों द्वाराउत्सर्जित धुएं और उद्योगों से निकलते प्रदूषणको पेड़ों की उपस्थिति के कारण काफी हदतक नियंत्रित और शुद्ध किया जाता है।
3. इस प्रकार से वायु और जल प्रदूषणनियंत्रित करते हैं ।
4. पक्षियों और जानवरों के लिए भोजन औरआश्रय प्रदान करता है ।
5. गर्मियों के दिनों में छाया और आश्रय प्रदानकरता है।
6. पेड़ पर्यावरण को शांत रखते हैं। वे गर्मी केअसर को कम करने में मदद करते हैं।
उनसे प्राप्त ठंडक का असर ऐसा है कि यहआसपास के स्थानों में 50% तक एयरकंडीशनर की आवश्यकता को कम करसकता है ।
7. औषधि / प्राकृतिक उप प्रदान करते हैं ।
सेब, राख, देवदार, बीच, एलो वेरा, तुलसी,सफेद पाइन और सिल्वर बिर्च सहित कई पेड़और पौधें अपनी औषधीय गुणों के लिए जानेजाते हैं।
8. पेड़ तनाव कम करते हैं ।
तनाव जो कि विभिन्न शारीरिक और मानसिकबीमारियों का कारण है, पेड़ों में हमें फिर सेजीवंत करने की शक्ति है।
इलाके से एकत्र किये गये ऑर्गेनिक वेस्ट की प्रोसेसिंग शुरू होती है।लोगों की जरूरत के मुताबिक वेस्ट कोकम्पोस्ट और फ्यूल स्टिक में तैयार कियाजाता है। इन स्टिक का इस्तेमाल कोयले औरलकड़ी के विकल्प के रूप में किया जा सकताहै। इससे किसी भी तरह का पॉल्यूशन नहींहोता है।पहले लोग ग्रीन वेस्ट को फेंक देते थे,लेकिन अब वे इस ग्रीन वेस्ट से पेड़-पौधों केलिये फर्टीलाइजर तैयार कर सकते हैं।फूल, पत्तियाँ, सब्जी इत्यादि से फर्टिलाइजर, स्मोकफ्री फ्यूल, फ्यूल स्टिक जैसे प्रोडक्ट बनाते हैं।इससे किसी भी तरह का पॉल्युशन नहीं होता।साथ ही ग्रीन वेस्ट का सही उपयोग हो जाताहै।
डॉ दीपा थदानी प्रोफेसर, जे एल एन मेडिकल कॉलेज अजमेर
डॉ लाल थदानी उप मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अजमेर ।